24 दिसंबर 2024: अनशन पर बैठे किसान नेता का 28वां दिन, कर्ज चोरों पर 1.96 लाख करोड़ बकाया, बस्तर की बच्ची के गले से बुलेट निकाला, फेक न्यूज की फिक्र शाह को, सर्वेलेंस बढ़ाया, श्याम बेनेगल का जाना
हिंदी भाषियों का क्यूरेटेड न्यूजलेटर. ज़रूरी ख़बरें और विश्लेषण. शोर कम, रोशनी ज्यादा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
‘हरकारा’ कहीं आपके स्पैम फोल्डर में तो नहीं जा रहा है! एक बार देख लें और तसल्ली कर लें कि न्यूजलेटरआपके मेन फोल्डर में ही जा रहा है.
किसान नेता डल्लेवाल का भूख हड़ताल 28वें दिन भी जारी, हालत गंभीर, 15 किलो वजन घटा : 66 वर्षीय किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल की हालत नाजुक बनी हुई है. वे फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की कानूनी गारंटी की मांग को लेकर आमरण अनशन पर पिछले 28 दिन से बैठे हैं. कैंसर पीड़ित डल्लेवाल ने 26 नवंबर को खनौरी में विरोध स्थल पर अपना आमरण अनशन शुरू किया था. तब से लेकर अब तक में उनका 15 किलो वजन कम हो गया है.
गुरुवार 19 दिसंबर को वे बेहोश हो गए थे. इसके बाद गैर सरकारी संगठन 5 रिवर्स हार्ट एसोसिएशन के चिकित्सा पेशेवरों की एक टीम ने डल्लेवाल को चेतावनी दी कि उन्हें कार्डियक अरेस्ट और मल्टी-ऑर्गन फेल्यर का ख़तरा है.
जानबूझकर कर्ज न चुकाने वालों पर 1.96 लाख करोड़ रुपये बकाया
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने 2,664 कॉरपोरेट कंपनियों को जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाले के रूप में वर्गीकृत किया है, जो बैंक ऋण चुकाने में सक्षम होने के बावजूद विफल रही हैं. इससे भारत के कॉरपोरेट क्षेत्र की वित्तीय सेहत और बैंकिंग सिस्टम के लिए संभावित जोखिमों को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं.
जॉर्ज मैथ्यू ने आरबीआई के आंकड़ों के हवाले से कहा है कि केंद्रीय बैंक ने जिन 2,664 कंपनियों को विलफुल डिफॉल्टर के रूप में वर्गीकृत किया है. उन पर इस साल मार्च तक 1.96 लाख करोड़ रुपये बकाया हैं. इस सूची में शीर्ष 100 में पहले नंबर पर भगोड़े मेहुल चोकसी की फर्म गीतांजलि जेम्स है. इसके बारे में आरबीआई ने कहा कि उसने जानबूझकर 8,516 करोड़ रुपये का भुगतान नहीं किया है. ऐसा आरबीआई से डेटा प्राप्त करने वाले जवाहर सरकार ने बताया कि 1.96 लाख करोड़ रुपये बहुत पैसे होते हैं, मगर 16.11 लाख करोड़ रुपये के उन ऋणों से काफी कम है, जिन्हें भारतीय बैंकिंग प्रणाली ने प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के पदभार संभालने के बाद से एक दशक में माफ किया है. उनका अनुमान है कि इस राशि का लगभग 12 लाख करोड़ रुपये कॉर्पोरेट क्षेत्र और धोखाधड़ी द्वारा ‘बर्बाद’ किया गया है. 16.11 लाख करोड़ रुपये वास्तव में कितने बड़े हैं, इसका अंदाजा लगाने के लिए जवाहर बताते हैं कि पिछले दस सालों में शिक्षा के लिए कुल बजट इस राशि से लगभग 40% कम है. वहीं स्वास्थ्य के लिए इसके आधे से भी कम है.
नक्सल समझकर बच्चे के गले में गोली! ‘द वायर’ ने वह एक्स-रे प्रकाशित किया है जिसमें एक माओवादी विरोधी अभियान के दौरान एक बच्चे को कथित तौर पर पुलिस की गोली लगी थी. मेडिकल रिपोर्ट में डॉक्टरों ने लिखा है कि उन्होंने ऑपरेशन कर उसके गले से बुलेट निकाला. संतोषी मरकाम ने अपनी रिपोर्ट में आदिवासी कार्यकर्ता के हवाले से कहा है कि मुठभेड़ में जख्मी हुए दो और बच्चों को अस्पताल से डिस्चार्ज मिलने के बाद पुलिस जबरन उठा कर ले गई. पुुलिस ने अपनी सफाई में ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के जयप्रकाश नायडू से कहा है कि नक्सली बच्चों को मानव ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं.
आईएएस, आईपीएस भर्तियां | किसे कितना आरक्षण : डेक्कन हेराल्ड ने केंद्र सरकार के कार्मिक मंत्रालय के हवाले से खबर दी है कि वर्ष 2018 से 2022 के बीच भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) और भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) में सर्वाधिक 46.15% लोग सामान्य श्रेणी से शामिल किए गए. जबकि ओबीसी से 29.4% लोगों को नियुक्त किया गया. तीसरा नंबर अनुसूचित जाति का है, जिसके 16.33% उम्मीदवारों को आईएएस और आईपीएस में नियुक्ति दी गई. जबकि, चौथे नंबर पर अनुसूचित जनजाति के 7.83% लोगों को नियुक्ति मिली.
केंद्र सरकार ने संशोधित ‘शिक्षा का अधिकार (RTE) अधिनियम’ के तहत ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ को खत्म कर दिया है. अब कक्षा 5 और 8 के छात्रों को आवश्यकता पड़ने पर उसी कक्षा में रोका जा सकेगा. नई अधिसूचना केंद्रीय सरकार द्वारा संचालित 3,000 से अधिक स्कूलों में लागू होगी, जिनमें केंद्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय और सैनिक स्कूल शामिल हैं. हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि किसी भी छात्र को प्राथमिक शिक्षा (कक्षा 8 तक) पूरी होने तक स्कूल से निकाला नहीं जाएगा. इस नीति के तहत, छात्रों को कक्षा 8 तक किसी भी परीक्षा में फेल होने पर भी अगली कक्षा में प्रमोट किया जाता था. इसका उद्देश्य छात्रों पर परीक्षा का दबाव कम करना और ड्रॉपआउट रेट घटाना था. सरकार का मानना है कि ‘नो-डिटेंशन पॉलिसी’ के कारण छात्रों की शैक्षणिक गुणवत्ता में गिरावट आई. शिक्षक और विशेषज्ञ भी लंबे समय से इस नीति की आलोचना कर रहे थे, क्योंकि छात्रों को अगली कक्षा में प्रमोट करने से उनकी पढ़ाई पर ध्यान देने की प्रवृत्ति कम हो गई थी.
बांग्लादेश ने भारत से शेख हसीना को वापस भेजने को कहा : बांग्लादेश ने अपनी अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को वापस भेजने की मांग की है. पीटीआई की ढाका से खबर है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सोमवार को कहा कि उसने शेख हसीना को वापस भेजने के लिए भारत को एक राजनयिक पत्र भेजा है. मालूम हो कि शेख हसीना 5 अगस्त को अपनी सरकार के गिरने के बाद से भारत की पनाह में हैं. बांग्लादेशी अंतरिम सरकार के विदेश सलाहकार तौहीद हसन ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया के लिए बांग्लादेश उनकी यहां वापसी चाहता है. गृह मामलों के सलाहकार जहांगीर आलम ने कहा कि भारत के साथ बांग्लादेश की प्रत्यर्पण संधि है और इसके तहत हसीना को बांग्लादेश लाया जा सकता है.
केंद्र सरकार के पास कोविड-19 महामारी की पहली और दूसरी लहर के शिकार डॉक्टरों का डेटा ही नहीं है. लिहाजा उसने यह जानकारी देने से इनकार कर दिया है कि कितने डॉक्टरों के परिवारों को मुआवजा दिया गया. ‘द न्यू इंडियन एक्सप्रेस’ में कविता बजेली दत्त की रिपोर्ट के अनुसार सरकार के इस दावे के बावजूद कि महामारी के दौरान मारे गए डॉक्टरों की कुल संख्या के बारे में उसके पास कोई डेटा नहीं है, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने डॉक्टरों की मौतों की संख्या 1,596 से अधिक बताई है.
'फेक न्यूज' के समाज पर बुरे असर की फिक़्र अमित शाह को
केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 23 दिसंबर को कहा कि देश में विभाजनकारी ताकतें आज भी सक्रिय हैं. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि दुष्प्रचार, दुष्प्रचार, दुष्प्रचार और फर्जी खबरें समाज के सामाजिक ताने-बाने को बाधित करने की ताकत रखती हैं. गृह मंत्री ने कहा कि नई तकनीकों का दुरुपयोग करके दुश्मन ताकतें फेक न्यूज के माध्यम से अफवाहें फैलाने और समाज को विभाजित करने की कोशिश कर रही हैं. मंत्री ने भारत विरोधी संगठनों और नेटवर्क का पता लगाने के लिए मित्र देशों के साथ एक खुफिया समन्वय रणनीति विकसित करने की आवश्यकता पर बात की और कहा कि इस रणनीति में ‘आक्रामक उपाय भी शामिल होने चाहिए.’ उन्होंने उल्लेख किया कि केवल जानकारी साझा करना पर्याप्त नहीं है और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि उन देशों से भी महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी प्राप्त हो. उन्होंने फेक न्यूज और साइबर अपराधों से निपटने के लिए प्रभावी रणनीतियों की आवश्यकता पर बल दिया. सार्वजनिक जीवन में खुद अमित शाह पर कई बार भ्रामक या विवादास्पद बयान देने के आरोप लगे हैं. उदाहरण के लिए कांग्रेस ने केंद्र सरकार को 'एक्स' से अमित शाह के एक ऐसे ही फेक वीडियो को हटाने के लिए कहा था, जिसमें कथित रूप से भ्रामक जानकारी थी. प्रधानमंत्री की ‘एंटायर पॉलिटिकल साइंस’ वाली डिग्री को देश के सामने लाने का काम भी खुद अमित शाह ने ही किया था. अंबेडकर को लेकर तो शाह संसद में तक भ्रामक जानकारी दे चुके. खैर, ये बस कुछ उदाहरण हैं.
इधर सर्वेलेंस कानून और कसे गये
टेलीकम्युनिकेशन (प्रोसिजर्स एंड सेफगार्ड्स फॉर लॉफुल इंटरसेप्शन ऑफ मेसेजेस) रूल्स, 2024 के तहत, भारत सरकार ने फोन संदेशों को इंटरसेप्ट करने के लिए एक नई रूपरेखा तय की है. ये नियम भारतीय टेलीग्राफ नियम, 1951 के नियम 419ए को समाप्त करते हैं. नए नियम आते ही सरकारी स्तर पर बहुत सारे निजता के मसले पर जवाबदेही के झमेले खत्म हो जाएंगे और सरकार किसी की भी बातें कान लगाकर सुन सकेगी! नए नियम अब केंद्रीय गृह सचिव और राज्य गृह विभाग के सचिव को किसी भी संदेश या संदेशों के समूह को इंटरसेप्ट करने की अनुमति देने का अधिकार देते हैं. इसके अलावा ‘अनिवार्य परिस्थितियों’ में केंद्रीय सरकार के संयुक्त सचिव भी इस प्रकार के आदेश जारी कर सकते हैं. हालांकि, ‘अनिवार्य परिस्थितियों’ को नियमों में परिभाषित नहीं किया गया है. केंद्र सरकार कानून प्रवर्तन या सुरक्षा एजेंसियों को टेलीकम्युनिकेशन अधिनियम, 2023 की धारा 20(2) के तहत संदेशों को इंटरसेप्ट करने के लिए अधिकृत कर सकती है. यह नया कानून देश की सुरक्षा और कानून-व्यवस्था बनाए रखने के बहाने पेश किया गया है, लेकिन अंत में इसमें सरकार के निशाने पर वही लोग रहेंगे जो अक्सर लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए आवाज बुलंद करते हैं, ऐसा अंदेशा भी जताया जा रहा है.
रघुराम राजन: ऐसे तो पूरा नहीं होगा 2047 तक विकसित भारत का सपना
आरबीआई के पूर्व गवर्नर और पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार रघुराम राजन ने 'द इंडियन एक्सप्रेस' के उदित मिश्रा से मुद्रास्फीति से लेकर जीडीपी वृद्धि और डोनाल्ड ट्रम्प के दूसरे कार्यकाल के तहत संभावित वैश्विक व्यापार युद्ध के प्रभाव तक विभिन्न विषयों पर अपनी बात रखी है. राजन ने कहा कि यदि मौजूदा नीतियों और आर्थिक हालात में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया गया, तो 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना, बस सपना ही रह सकता है. उन्होंने महंगाई को नियंत्रण में रखने और सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए ठोस नीतियों की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि भारत की जीडीपी वृद्धि दर में स्थिरता बनाए रखने के लिए संरचनात्मक सुधारों की जरूरत है. राजन ने चेतावनी दी कि यदि डोनाल्ड ट्रम्प अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान वैश्विक व्यापार पर कठोर नीतियां अपनाते हैं, तो यह भारत समेत कई देशों की अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है.
निजी अस्पतालों की लगभग आधी डिलीवरी सीजेरियन!
लांसेट की रिपोर्ट: निजी अस्पतालों की दर 47% है, तो सरकारी अस्पतालों मे 14%
मेडिकल साइंस पत्र लॉन्सेट में प्रकाशित नए शोध से पता चला है कि भारत में सिजेरियन डिलीवरी की दर 21.5% है. इसमें यह भी पाया गया कि निजी अस्पतालों में बच्चे को जन्म देने वाली सबसे अमीर घरों की महिलाओं में सिजेरियन डिलिवरी दर सबसे अधिक 50% थी, जबकि सरकारी अस्पतालों में यह दर घटकर 33% हो जाती है. वहीं निजी अस्पतालों में सबसे गरीब महिलाओं में सिजेरियन की दर 25% थी, वहीं सरकारी अस्पतालों में महज 7% थी.
डेटा से यह पता चलता है कि उच्च आय वाली महिलाओं में सिजेरियन डिलीवरी की दर गरीब महिलाओं की तुलना में अधिक थी. वहीं निजी अस्पतालों में सिजेरियन डिलिवरी की दर कुल 47.57% थी तो वहीं सरकारी अस्पतालों में महज 14% थी. इतना ही नहीं, अलग-अलग राज्यों में सिजेरियन डिलीवरी की दर में जबरदस्त असमानता देखने को मिली. तेलंगाना में जहां 60.7% यह दर थी, वहीं नगालैंड में महज 5.2% थी. शोधकर्ताओं ने 2020-21 में किए गए राष्ट्रव्यापी स्वास्थ्य सर्वेक्षण के आंकड़ों के विश्लेषण के आधार पर यह रिपोर्ट तैयार की है.
वेटिंग फॉर गुल : द स्टोरी ऑफ गुलफिशा फातिमा
गुलफिशा फातिमा ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातक और एमबीए की डिग्री हासिल की. पिछले चार साल और नौ महीने से वो बिना किसी ट्रायल या जमानत के जेल में बंद हैं. अप्रैल 2020 में उन्हें दिल्ली दंगों में कथित संलिप्तता के आरोप में गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) के तहत गिरफ्तार किया गया था. उनकी ख्वाहिश थी कि वे पीएचडी करें, लेकिन उनकी ज़िंदगी जेल की सलाखों के पीछे थम गई है. मानवाधिकार संगठनों और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं, जैसे कि संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों, ने उनकी लंबी हिरासत पर सवाल उठाया है. उनके परिवार और समर्थकों का कहना है कि यह सरकार की असहमति को दबाने की नीति का हिस्सा है. गुलफिशा ने जेल से लिखे पत्रों में अपनी मानसिक और शारीरिक स्थिति का जिक्र किया है, जहां उन्होंने अपने दिन को "सीढ़ी जैसा" बताया है, जो खत्म ही नहीं होता. देखिए अलीशान जाफ़री की ‘द वायर’ में ये रिपोर्ट..
भाजपा विधायक और भाइयों पर गैंगरेप का मामला दर्ज : उत्तर प्रदेश के बदायूं की एक विशेष अदालत के निर्देश पर बिल्सी से भाजपा विधायक हरीश चंद्र शाक्य, उनके दो भाई और उनके 13 साथियों पर सामूहिक बलात्कार, धोखाधड़ी समेत अन्य आरोपों में मामला दर्ज किया गया है. 10 दिन पहले जारी अदालत के निर्देश पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने शनिवार को एक प्राथमिकी दर्ज की. शाक्य को पुलिस ने अब तक गिरफ्तार नहीं किया है. वहीं भाजपा विधायक ने आरोपों से इनकार किया है और कहा है कि उन्हें पुलिस जांच पर पूरा भरोसा है.
सनी लियोन को मिला ‘महतारी वंदन योजना’ का लाभ, हर महीने 1,000 रुपये मिलने वाली योजना में धोखाधड़ी : छत्तीसगढ़ सरकार की 'महातारी वंदन' योजना की लाभार्थी सनी लियोन का भी नाम मिला है. पुलिस के अनुसार, सनी लियोन के नाम का इस्तेमाल वीरेंद्र जोशी नाम का व्यक्ति कर रहा था. इस योजना में महिलाओं को 1,000 रुपये की मासिक वित्तीय प्रोत्साहन राशि दी जाती है. प्रारंभिक जांच में पता चला है कि स्थानीय आंगनवाड़ी कार्यकर्ता वेदमती जोशी की आईडी पर लाभार्थी के रूप में सनी लियोन का नाम दर्ज है. वह अब तक इस योजना के तहत मार्च 2024 से दिसंबर 2024 तक हर महीने 1,000 रुपये उठाता रहा है.
रालोद ने सभी प्रवक्ता बरखास्त भाजपा गठबंधन सरकार में शामिल राष्ट्रीय लोकदल के प्रवक्ताओं ने अंबेडकर पर अमित शाह की टिप्पणी के लिए केंद्रीय गृह मंत्री से माफी की मांग की थी. इसके कुछ दिनों बाद रालोद सुप्रीमो जयंत चौधरी के निर्देश पर तत्काल प्रभाव से पार्टी के सभी राष्ट्रीय और राज्य प्रवक्ताओं को अगले आदेश तक बरखास्त कर दिया गया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने पूर्व आईएएस पूजा खेड़कर की अग्रिम जमानत की याचिका खारिज कर दी है. पूजा पर यूपीएससी परीक्षा में ओबीसी और विकलांग कोटे का गलत इस्तेमाल कर धोखाधड़ी का आरोप है. न्यायाधीश चंद्र धारी सिंह ने टिप्पणी की कि संवैधानिक संस्था और समाज के साथ फर्जीवाड़े का यह क्लासिक मामला है. कोर्ट ने पूजा को गिरफ़्तारी से प्राप्त अंतरिम सुरक्षा भी रद्द कर दी है.
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वी रामसुब्रमण्यम को सोमवार को भारतीय राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का नौवां अध्यक्ष नियुक्त किया गया. सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज अरुण कुमार मिश्रा का कार्यकाल एक जून को पूरा हो जाने के बाद से यह पद खाली पड़ा था. 2019 से 2023 तक शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में कार्य करने वाले रामसुब्रमण्यम हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायधीश भी रह चुके हैं.
आर्टिकल 14 : ओडिशा के आदिवासी इलाके में भूख और खाद्य असुरक्षा
अच्छे दिनों के अमृतकाल में आम की सड़ी गुठली खाकर ज़िंदा रहने की कोशिश
राखी घोष ओडिशा की स्वतंत्र पत्रकार हैं. वह जलवायु परिवर्तन, खाद्य सुरक्षा, लिंग भेद और स्वास्थ्य पर लिखती हैं. ‘आर्टिकल 14’ के लिए उन्होंने ओडिशा के आदिवासी किस स्थिति में जी रहे हैं, इस पर लिखा है.
ओडिशा के कंधमाल जिले में हाल ही में बहुत दिनों से रखे आम की गुठली का दलिया खाने से तीन महिलाओं की मौत हो गई. वह भी ऐसी आम की गुठली, जिनमें ज्यादा दिनों तक घर में रखे जाने से फफूंद लग चुका था. मृतकों के परिवार से यह पूछने पर कि गुठली में फफूंद लगने के बाद भी क्यों खाया, तो कहा, खाने को घर में और कुछ नहीं था. जंगली आम की गुठली ओडिशा में खाना आम बात है. यह उस समय लोग खाते हैं, जब खाद्यान्न संकट होता है.
यह कहानी ओडिशा के किसी एक जिले की नहीं, बल्कि आदिवासी, दलित बहुल करीब सभी जिलों की है. उनके पास खाने का भोजन खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं. ओडिशा में 2015-16 और 2019-21 के बीच बहुआयामी गरीबी में 48% की गिरावट के सरकारी दावे के बावजूद ओडिशा से भूख और भुखमरी की खबरें आती रहती हैं.
ओडिशा सरकार 40-50 रुपये प्रति किलोग्राम के बाजार मूल्य के बजाय 1 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से सब्सिडी वाला चावल उपलब्ध कराती है. हालांकि पहाड़ी या वन क्षेत्रों के गांवों के लोगों का कहना है कि तीन महीने में एक बार उन्हें खाद्यान्न का कोटा मिलता है. इस वजह से ग्रामीण परिवारों को खाद्य सुरक्षा साल में सिर्फ चार-छह महीनों तक ही मिलता है. इसके अलावा एक परिवार के सभी लोगों का नाम राशन कॉर्ड में नहीं है. उदाहरण के लिए अनिल पटमाझी के परिवार में सात लोग हैं और कॉर्ड में नाम सिर्फ चार का है.
वह बताते हैं कि भूख से बचने के लिए उन्होंने अपनी 11 वर्षीय बेटी को पास के आश्रम स्कूल में दाखिला दिलाया, ताकि उसे हर दिन दो बार भोजन मिल सके. ऐसे सारे आदिवासी परिवार के बच्चों का मुख्य स्रोत स्कूल में मिलने वाला मध्याह्न भोजन है. यह भोजन 1995 में शुरू किए गए एक कार्यक्रम के तहत बच्चों को मिलता है.
एनएफएचएस-5 के आंकड़ों के अनुसार, जिले में 5 वर्ष से कम आयु के 34.2% बच्चे अविकसित हैं. वहीं इसी आयु वर्ग के 23.2% बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित हैं. स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2019-2021) के अनुसार, ओडिशा में 5 वर्ष की आयु तक के 65.6% ग्रामीण बच्चे, 65.2% गैर-गर्भवती महिलाएं और 49 वर्ष की आयु तक की 62% गर्भवती महिलाएं एनीमिया से पीड़ित थीं.
शुरुआती वर्षों में, उन्हें भारत के बेहतरीन वर्कफेयर कार्यक्रम मनरेगा-2005 के तहत काम मिला. मगर अब गांव के अधिकतर पुरुषों के पास जॉब कॉर्ड होने के बावजूद काम नहीं मिलता. उदाहरण के लिए सितंबर-नवंबर 2024 के बीच कंधमाल के श्रमिकों को एक दिन भी काम नहीं मिला. अनिल पटमाझी और रसेंटा पटमाझी ने बताया आखिरी बार 2023-24 में मनरेगा के तहत तीन से पांच दिनों तक काम मिला.
इतना ही नहीं यहां के ग्रामीणों को वन भूमि के भूखंडों के अधिकार मिले थे. ये अधिकार अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वनवासी अधिनियम, 2006 के तहत दिए गए व्यक्तिगत वन अधिकारों के लिए थे. लेकिन वन विभाग ने उन्हें ऐसी भूमि पर खेती करने नहीं देता. वन विभाग के नियम उन्हें कंदुला (एक प्रकार की दाल), काला चना, सेम और हरा चना जैसी दालों की खेती करने से भी रोकते हैं. इससे ग्रामीणों के लिए प्रोटीनयुक्त भोजन तक पहुँचना और मुश्किल हो जाता है.
कटाक्ष
राकेश कायस्थ: इंडिपेंडेंट वॉयस बनना सबके बूते की बात नहीं
गणिका की तरह चारणों में भी कभी कोई स्थायी चरित्र नहीं होता. वे इस द्वार से उस द्वार जाते हैं, जो राजा अशर्फियों से मुंह भर दे, उसका कीर्तिगान गाते हैं और बाकी सबकी खिल्ली उड़ाते हैं. राजा रत्नसेन का दरबारी कवि राघव चेतन जब निकाला गया, तो सीधे अलाउद्दीन खिलजी के दरबार में पहुंचा और पद्मिनी की सुंदरता का वर्णन करके सुल्तान को हमले के लिए उकसा बैठा.
कुमार विश्वास के नये व्यवहार को लेकर जो अविश्वास सोशल मीडिया पर जताया जा रहा है, उसमें मासूमियत के सिवा कुछ नहीं है. मंचीय कविता के सुपर स्टार कुमार विश्वास के पूरे व्यवहार में एक खास तरह का पैटर्न रहा है. उन्होंने हमेशा अपने लिए राजनीतिक हैसियत चाही है और उसके लिए यथासंभव जोड़-जतन किये हैं.
जब नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, तब कुमार विश्वास ने उनके दरबार में जाकर कसीदे पढ़े थे और मोदी की तुलना हलाहल पी जाने वाले शिव से की थी. परिस्थितियां बदलीं, अन्ना ने दिल्ली में गन्ना बोया और कुमार विश्वास सबसे बड़े लाभार्थियों में शामिल हुए.
अन्ना आंदोलन के दौरान केजरीवाल के बाद सबसे ज्यादा फुटेज कुमार विश्वास को मिला. राहुल गाँधी के खिलाफ चुनाव लड़कर कद और बढ़ा और इन सबका असर उनके धंधे पर हुआ.
आम आदमी पार्टी को सत्ता मिल गई लेकिन केजरीवाल समेत पार्टी का कोई नेता पेशेवर राजनेता नहीं था. हर किसी को जल्दी थी. कुमार विश्वास ठंडा करके नहीं खा पाये और जल्दबाजी में लड़-झगड़कर अपना बना बनाया खेल बिगाड़ बैठे.
उसके बाद वो दौर आया जब कुमार विश्वास ने नेहरूजी की शान में कई वीडियो जारी किये. बार-बार अपने भाषणों में उनकी महानता का जिक्र किया. राहुल गाँधी की प्रशंसा की और काँग्रेस के जरिये उनके राज्यसभा में पहुँचने की उम्मीदें हवा में तैरने लगीं. लेकिन ये सबकुछ नहीं हुआ.
अब कुमार विश्वास ने वही तिकड़म अपनाया है, जो अपने आपको बौद्धिक कहने वाले इंफ्लुएंसर किस्म के लोग अपना रहे हैं. ऐसे अनगिनत लोग हैं और वो अपने लिए शुद्धिकरण का सबसे आसान रास्ता सरकार प्रायोजित सांप्रादायिकता की आग में ईंधन डालना मान रहे हैं.
चोरी के लिए कुख्यात रहे गीतकार मनोज मुंतशिर को कौन भूल सकता है. सत्ता बदलते ही उनका उपनाम शुक्ला वापस आया और गंगी-जमनी तहजीब की बात करते-करते अचानक मुसलमानों को गालियां बकने लगे.
किसान बिल के दौरान अपनी कारगुजारी दिखाने वाले राज्यसभा के उप-सभापति हरिवंश नारायण सिंह को किसी जमाने में उपनाम से चिढ़ थी और वो प्रगतिशील पत्रकार बिरादरी के सबसे बड़े नेता हुआ करते थे, अब जो हैं, वो पूरी दुनिया को पता है.
सेक्यूलरिज्म के चैंपियन रहे आरिफ मोहम्मद खान ने संघ के मन-माफिक राग अलापना शुरु किया लेकिन उनकी दौड़ राज्यपाल से आगे नहीं पहुंच पाई. जो आदमी चालीस साल पहले केंद्रीय कैबिनेट में एक स्टार मिनिस्टर रहा हो, `गोबरनर’ बनकर उसने क्या हासिल कर लिया?
क्या गारंटी है कि ये सब करके कुमार विश्वास को वो सबकुछ मिल जाएगा जो वो चाह रहे हैं. बीजेपी की अपनी लिस्ट बहुत लंबी है. वफादारी बदलकर आये कितने लोगों को कहां तक एडजस्ट करेगी. बोल बचन सुनाकर कोई ज्यादा से ज्यादा चीफ ट्रोल का दर्जा पा सकता है, या फिर छल-छद्म के अपने कुछ काम करवा सकता है. जो लोग राजनीति समझते हैं उन्हें पता है कि राज्यसभा की सीट अब उतनी सस्ती नहीं कि हर किसी को बख्शीश में दे दी जाये.
बोल-बचन के धनी सत्ताकांक्षी लोगों को पब्लिक इंटलेक्चुअल समझने की गलती ना करें. इंडिपेंडेंट वॉयस बनना सबके बूते की बात नहीं है.
श्याम बेनेगल: समानांतर की मुख्यधारा
अभी 8 दिन पहले 14 दिसंबर की तो बात है. सोशल मीडिया पर एक क्लिप वायरल हो रही थी. फिल्म निर्देशक श्याम बेनेगल का 90वां जन्मदिन मनाने बहुत सारे यार, दोस्त इकट्ठा हुए थे. हंसी-ठहाकों का सिलसिला चल रहा था. एक सुंदर शाम थी प्यार और सुकून की, दोस्तों की महफिल की. शाम गुजर गई. और अपनी जिंदगी के 9 दशक पूरे करने के 9 दिन बाद खुद वे भी इस फानी दुनिया को अलविदा कह गए. और इसी के साथ भारतीय सिनेमा के एक युग का अंत हो गया.
14 दिसंबर, 1934 को हैदराबाद के एक मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे श्याम सुंदर बेनेगल ने जीवन की पहली फिल्म 12 साल की उम्र में बनाई थी. पिता को फोटोग्राफी का बहुत शौक था तो उन्होंने एक जन्मदिन पर बेटे को कैमरा उपहार में दिया. उसी कैमरे से उन्होंने अपनी पहली फिल्म शूट की. इकोनॉमिक्स पढ़ने के बाद उन्होंने काफी साल एडवर्टाइजिंग एजेंसी में भी काम किया था. श्याम बेनेगल की दादी और फिल्मकार गुरुदत्त की नानी सगी बहनें थीं. कह सकते हैं कि कला और कहानी कहन का हुनर शायद उनके खून में था.
सालों पहले एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि उन्हें कहानी सुनाने का शौक था और कैमरे की समझ भी थी, लेकिन फिर भी पहली फिल्म बनाने के लिए उन्हें 10 साल इंतजार करना पड़ा क्योंकि फिल्म मेकिंग एक महंगा माध्यम है. उनके पास फिल्म बनाने के पैसे नहीं थे. पहली फिल्म के लिए फंड्स का जुगाड़ बड़ी मुश्किलों से हुआ था. 1975 में आई श्याम बेनेगल की पहली फिल्म ‘अंकुर’ के साथ भारतीय सिनेमा की जमीन पर भी एक नया अंकुर फूटा था. उस साल इस फिल्म को सेकेंड बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला. अगले साल 1976 में उनकी दूसरी फिल्म आई ‘निशांत’ और इस फिल्म को भी बेस्ट फीचर फिल्म का नेशनल अवॉर्ड मिला. अगले साल फिर 1977 में ‘मंथन,’ 1978 में ‘भूमिका’ और 1979 में ‘जुनून.’ हर साल उनकी फिल्म को नेशनल फिल्म अवॉर्ड से नवाजा गया. भारतीय सिनेमा के इतिहास में यह एक रिकॉर्ड है, जिसे अब तक कोई दूसरा फिल्मकार तोड़ नहीं सका है.
रिकॉर्ड तो और भी बहुत सारे हैं. वे एकमात्र ऐसे फिल्मकार हैं, जिन्होंने 40 से ज्यादा डॉक्यूमेंट्री फिल्में भी बनाईं. टेलीविजन के लिए सीरियल्स और डॉक्यू ड्रामा बनाया.
उनका अब तक का सबसे महत्वपूर्ण काम है 1988 में दूरदर्शन पर आया सीरियल ‘भारत एक खोज,’ जो पंडित जवाहरलाल नेहरू की किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ पर आधारित था. भारत के इतिहास और आधुनिक भारत के निर्माण की समूची यात्रा को उन्होंने इस सीरियल की कहानियों में जिस तरह उतारा था, उसकी दूसरी मिसाल देखने को नहीं मिलती. यह बात अलग है कि आजादी के 40 बरस बाद जब यह सीरियल इस देश की इतिहास यात्रा का पुनरुत्थान कर रहा था, उसके महज चार साल बाद ही 1992 में उत्तर प्रदेश के अयोध्या में इस देश की कहानी में एक नया अध्याय जोड़ दिया गया, जिसे लेकर बेनेगल मुतमईन तो बिलकुल भी नहीं थे.
पिछले कुछ सालों में उन्होंने मीडिया से बात करना, इंटरव्यू देना तकरीबन बंद सा कर दिया था. कुछ महीने पहले अपने आखिरी इंटरव्यू में उन्होंने देश के बदलते राजनीतिक चरित्र और हालात को लेकर चिंता जताई थी.
अब जब वो दुनिया में नहीं हैं तो सवाल ये है कि इतिहास उन्हें कैसे याद रखेगा. श्याम बेनेगल कौन थे? क्या 9 बार नेशनल फिल्म अवॉर्ड जीतने वाले भारत के एकमात्र फिल्म निर्देशक? 1976 में पद्मश्री और 1991 में पद्मभूषण और 2005 में भारतीय सिनेमा के सर्वोच्च पुरस्कार दादा साहब फाल्के से सम्मानित. या वो जो साल 2011 की फरवरी में एक दोपहर भारत के सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने पहुंच गए थे. उनकी बेटी पिया बेनेगल लेस्बियन हैं. जब 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले को पलटते हुए समलैंगिकता को अपराध करार दिया था तो श्याम बेनेगल अपने जैसे ढेर सारे पेरेंट्स के साथ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए. उन्होंने कोर्ट से कहा, "आप हमारे बच्चों को अपराधी कह रहे हैं. हमारे बच्चे अपराधी नहीं हैं. हम अपने बच्चों को बहुत करीब से जानते हैं और वे दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे हैं.”
श्याम बेनेगल ने जो कहानियों में सुनाया, जो सिनेमा के पर्दे पर दिखाया, वो जिंदगी में जिया भी. उनकी पॉलिटिक्स क्लीयर थी. अपनी कला और जीवन, दोनों में वो उनके साथ थे, तो कतार में आखिर में खड़े थे.
भारत एक खोज का टाइटल गीत नासदीय सूक्त से है, संस्कृत से जिसका हिंदी अनुवाद वसंतदेव ने किया था. उसके शब्द कुछ यूं थे–
“सृष्टि से पहले सत नहीं था
असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं
आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या
कहां
किसने ढंका था
उस पल तो अगम अतल जल भी कहां था.”
इन्हें सुनते हुए आत्मा में जो एक झिंझोड़ सी होती है, जैसी उनकी फिल्में देखते हुए होती है, जैसी इस वक्त इस याद के साथ हो रही है कि कल तक वो यहीं थे, साथ, आसपास कहीं और अब नहीं हैं. तो वो क्या है, जो उनके न होने के बाद भी रहेगा. उनका काम, उनकी कहानियां, उनका सिनेमा और उनकी याद.
चलते-चलते श्याम बेनेगल की फिल्मों की एक प्लेलिस्ट. और ये क्लिप भी.
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