23 दिसंबर 2024: संसद अपनी सबसे खटारा चाल पर, मणिपुर की ढीली जाँच, पैगासस को लेकर भारत में फिर सवाल, मोदी के अंबेडकर प्रेम पर जेफरलो, काकेस्टोक्रैसी का ख़तरा, जलवायु परिवर्तन बढ़ाएगा पलायन..
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निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, मज़कूर आलम, गौरव नौड़ियाल
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आज की सुर्खियां : इंडियन एक्सप्रेस में अंजिश्नु दास ने बताया है कि 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद इस बार संसद का शीतकालीन सत्र सबसे कम उत्पादकता वाला रहा है. लोकसभा में सिर्फ 52% या 62 घंटे काम हुआ, जो 2023 के मानसून सत्र के बाद सबसे कम उत्पादक है. 2014 के बाद केवल आठ अन्य सत्र ही इससे कम उत्पादक रहे हैं. इसके विपरीत पिछला सत्र (चुनाव के बाद का बजट सत्र) अपने निर्धारित समय का 135% कार्यरत रहा या 115 घंटे से अधिक. राज्य सभा में भी उत्पादकता में गिरावट आई है. उच्च सदन ने 44 घंटे काम किया, जो इसके निर्धारित समय का केवल 39% है, जबकि पिछले सत्र में यह 93 घंटे या निर्धारित समय का 112% था. राज्य सभा इस वर्ष के बजट सत्र के बाद से इतनी कम उत्पादक नहीं रही है. लोकसभा में केवल 23 घंटे और राज्यसभा में 9 घंटे विधायी कार्यों के लिए समर्पित किए गए. इस सत्र में पेश किए गए नए विधेयकों में 'एक राष्ट्र, एक चुनाव' प्रस्ताव पर दो विधेयक शामिल थे, जिन्हें परीक्षण के लिए संसद की संयुक्त समिति को भेजा गया है. संसदीय पैनल को भेजे गए वक्फ (संशोधन) विधेयक को भी इस सत्र में पेश किए जाने की उम्मीद थी, लेकिन उसे अगले सत्र के लिए स्थगित कर दिया गया. प्रश्नकाल भी कम उत्पादक रहा. पिछली बार के 86 के मुकाबले केवल 61 महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे गए.
इस बीच कांग्रेस ने फैसला किया है कि वह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर अपने हमले तेज करेगी. पार्टी ‘डॉ. अंबेडकर सम्मान सप्ताह’ मनाएगी. जिला स्तर पर मार्च निकाले जाएंगे. कलेक्टरों के जरिए राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपकर अमित शाह को केंद्रीय मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग की जाएगी. वृहस्पतिवार को वेलगारी (कर्नाटक) में होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में भी अंबेडकर का मुद्दा हावी रह सकता है. मालूम हो, अमित शाह ने 17 दिसंबर मंगलवार को राज्यसभा में कहा था, “अभी एक फैशन हो गया है कि अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर, अंबेडकर. इतना नाम अगर भगवान का लेते तो सात जन्मों तक स्वर्ग मिल जाता.” इसी क्रम में लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी सोमवार 23 दिसंबर को परभणी जा रहे हैं, जहां वह हिंसा में मारे गए दोनों व्यक्तियों के परिवारों से मुलाकात करेंगे. एक की मौत पुलिस हिरासत में हुई थी.
चुनाव नियम में संशोधन मोदी सरकार की साजिश : कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने चुनाव नियम 1961 में संशोधन करने के लिए केंद्र सरकार की तीखी आलोचना की है. कहा है कि यह मोदी सरकार की चुनाव आयोग की अखंडता, निष्पक्षता, विश्वसनीयता को नष्ट करने की सोची समझी साजिश है. इसी तरह सरकार ने चुनाव आयुक्तों की चयनकर्ता पैनल से सीजेआई को बाहर किया था.
पेगासस का सवाल फिर उछला : कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला ने पेगासस स्पायवेयर मामले पर अमेरिकी अदालत के फैसले के बाद भारत में सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने पूछा है कि क्या अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगे कोई जांच करेगा और क्या मौजूदा सरकार के राजनीतिक कार्यकारी या अधिकारियों और एनएसओ कंपनी के खिलाफ उचित आपराधिक मामले दर्ज किए जाएंगे. दरअसल पेगासस स्पायवेयर का उपयोग कर कई पत्रकारों, नेताओं और कार्यकर्ताओं की जासूसी किए जाने के आरोप लगे थे. इस मामले ने भारत सहित दुनिया भर में राजनीतिक और सामाजिक बहस छेड़ दी थी. हाल ही में, अमेरिकी अदालत ने एनएसओ ग्रुप, जो पेगासस स्पायवेयर का मालिक है, के खिलाफ सख्त रुख अपनाते हुए उनके दावों को खारिज कर दिया. सुरजेवाला ने इस फैसले का हवाला देते हुए भारत में न्यायिक और कानूनी प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं. 'हरकारा' के 22 दिसंबर के अंक में इस मसले पर विस्तार से लिखा गया है.
भयानक ढीली चल रही है मणिपुर की जाँच
'द हिंदू' के लिए विजेता सिंह की रिपोर्ट है कि मणिपुर हिंसा मामले में गठित एसआईटी की टीमों ने केवल कुछ मामलों में ही चार्जशीट दाखिल की है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर ये टीमें मणिपुर में जातीय हिंसा के दौरान महिलाओं के खिलाफ बलात्कार, यौन अपराध, हत्या, लूट और आगजनी जैसे मामलों की जांच के लिए गठित की गई थी. 7 अगस्त, 2023 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने 42 एसआईटी टीमों का गठन किया था. इन टीमों को 3 मई से 30 जुलाई, 2023 तक मणिपुर में हुई हिंसा से जुड़े 6,523 प्रथम सूचना रिपोर्टों (FIR) की जांच का काम सौंपा गया था. हालांकि, रिकॉर्ड्स की सफाई के बाद एफआईआर की संख्या घटकर 3,023 रह गई. यह प्रक्रिया इसलिए जरूरी थी, क्योंकि कई अपराधों के लिए कई बार एफआईआर दर्ज की गई थी. मणिपुर में लोग हिंसा के कारण अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं और सुरक्षा के डर से कई लोगों ने स्थानीय पुलिस थानों तक जाने के बजाय जीरो एफआईआर दर्ज करवाई. जीरो एफआईआर ऐसी रिपोर्ट होती है जिसे बिना क्षेत्राधिकार की परवाह किए दर्ज किया जाता है और बाद में इसे संबंधित पुलिस थाने में स्थानांतरित कर दिया जाता है. यह रिपोर्ट मणिपुर में हिंसा के गंभीर प्रभावों और एसआईटी द्वारा मामलों की जांच में धीमी प्रगति को उजागर करती है.
अपना ही जहाज गिराया अमेरिका ने : अमेरिकी सेना ने दोस्ताना फायराना में अपने ही जेट जहाज को गिरा दिया. लाल सागर में ये कार्रवाई येमन के हूती समूहों को धमकाए रखने के लिए की गई थी. दोनो पायलट बचा लिए गये. लाल सागर के गलियारे को ईरान समर्थित हूती समूहों से सुरक्षित रखने के लिए अमेरिकी और यूरीपीय सैन्य गठबंधन यहाँ पहरेदारी करते हैं. हालांकि सेंट्रल कमांड ने यह साफ नहीं किया कि पूरा माज़रा क्या था, जिसके तहत ऐसा हो गया. आपको याद हो कि पुलवामा हमले के बाद भारत ने भी अपना ही हैलीकॉप्टर उड़ा दिया था, जिसमें फौजी सवार थे. बाद में कहा कि गफलत हो गई थी.
अमेरिका ने यमन की राजधानी सना में हूती ठिकानों पर हमले किए
अमेरिका ने यमन की राजधानी सना में हूती विद्रोही समूह के ठिकानों पर हवाई हमले किए हैं. यह कार्रवाई हाल ही में यमन विद्रोही समूह और इजरायली सेना के बीच हुए हमलों की घटनाओं के बाद किए गए हैं. हूती विद्रोहियों को ईरान का समर्थन प्राप्त है. वो लंबे समय से यमन में सरकार और उसके सहयोगी देशों के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है. हाल के दिनों में हूती विद्रोहियों और इजरायली सेना के बीच झड़पें तेज हो गई हैं. अमेरिका ने कहा है कि उसके ये हमले हूती विद्रोही समूह द्वारा किए जा रहे खतरों को रोकने के लिए किए गए. इन हमलों का उद्देश्य हमेशा की ही तरह बकौल अमेरिका 'क्षेत्र में शांति और स्थिरता' सुनिश्चित करना है.
ट्रम्प ने मार्क बर्नेट को बनाया यूके का दूत, 2016 में किया था ट्रम्प की उम्मीदवारी का विरोध
डोनाल्ड ट्रम्प ने ब्रिटिश टेलीविजन निर्माता मार्क बर्नेट को यूके में अमेरिका का विशेष दूत नियुक्त किया है. मार्क ने ट्रम्प के शो ‘द अप्रेंटिस’ के निर्माण में मदद की थी. शनिवार को सोशल मीडिया साइट ‘ट्रुथ सोशल’ पर इसकी घोषणा की और 64 वर्षीय बर्नेट की प्रशंसा में कहा, ‘टेलीविजन निर्माण और व्यवसाय में एक विशिष्ट करियर के साथ, मार्क इस खास भूमिका में कूटनीतिक कौशल और अंतरराष्ट्रीय मान्यता का एक अनूठा मिश्रण लाते हैं’. ट्रम्प ने बर्नेट द्वारा बनाए गए कई शो का हवाला दिया. इनमें सर्वाइवर, शार्क टैंक, द वॉयस और सबसे खास ‘द अप्रेंटिस’ शामिल हैं, जो 2004 से 2017 तक चला और ट्रम्प इसके होस्ट थे. एमजीएम वर्ल्डवाइड टेलीविजन ग्रुप के पूर्व अध्यक्ष के रूप में, बर्नेट ने 13 एमी जीते हैं. बर्नेट की नियुक्ति ट्रम्प की ओर से रिपब्लिकन मेगा-डोनर और निवेश बैंकर वॉरेन स्टीफंस को यूके में यूएस का राजदूत नियुक्त करने के बाद हुई है. मार्क बर्नेट की नियुक्ति के लिए सीनेट की सहमति की जरूरत नहीं है. ‘द अप्रेंटिस’ के बाद से मार्क बर्नेट के ट्रम्प के संबंध बहुत अच्छे हैं. बता दें कि ये वही मार्क बर्नेट हैं. जिन्होंने डोनाल्ड ट्रम्प के 2016 के विवादास्पद राष्ट्रपति अभियान से खुद को दूर कर लिया था. उस समय उन्होंने बयान जारी कर कहा था कि डोनाल्ड ट्रम्प की उम्मीदवारी से जुड़ी ‘घृणा, विभाजन और स्त्री-द्वेष’ को वह अस्वीकार करते हैं.
क्रिस्तोफ़ जेफरलो अंबेडकर के प्रति हिंदुत्व ताकतों के यकायक उमड़ते प्रेम पर
'द वायर' के लिए अपने लेख में क्रिस्तोफ जेफरलो लिखते हैं कि इतिहास गवाह है कि हिंदू राष्ट्रवादी, कांग्रेस से ज्यादा अंबेडकर के पक्षधर कभी नहीं रहे. ये बात वो उन बयानों की रोशनी में कह रहे हैं, जिसमें भाजपा अपने छिटकते दलित वोट बैंक को थामे रखने के लिए अंबेडकर के प्रेम में इन दिनों डूबी नजर आती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में एक पोस्ट में कहा था, “यदि कांग्रेस और इसके सड़े हुए पारिस्थितिकी तंत्र को लगता है कि उनके झूठ अंबेडकर के प्रति उनके अपमान को छिपा सकते हैं, तो वे गलत हैं.” यह पोस्ट यह संकेत देती है कि हिंदू राष्ट्रीयता आंदोलन, जिसमें आज प्रधानमंत्री मोदी प्रमुख हैं, ने अंबेडकर का समर्थन कांग्रेस से अधिक किया. हालांकि, ऐतिहासिक साक्ष्य इसके विपरीत हैं. दरअसल, हिंदू राष्ट्रीयतावादियों ने अंबेडकर का लगातार विरोध किया, खासकर उनके उस प्रयास के खिलाफ जिससे वे दलितों को जातिवाद से मुक्ति दिलाना चाहते थे, जिसे अंबेडकर ने हिंदू धर्म में अंतर्निहित बताया था. क्रिस्तोफ जेफरलो लिखते हैं 1932 में ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए कम्यूनल अवार्ड का विरोध कांग्रेस के साथ हिंदू राष्ट्रीयतावादियों ने भी किया था. महात्मा गांधी ने अंबेडकर को अलग निर्वाचनी व्यवस्था से समझौता करने के लिए मजबूर किया, लेकिन हिंदू महासभा के नेता मदन मोहन मालवीय और महाराष्ट्र के नेता बी. एस. मुंझे ने भी अंबेडकर के खिलाफ अभियान चलाया. मुंझे ने दलितों को हिंदू महासभा से जोड़ने के लिए ग. ए. गावई का समर्थन किया, ताकि अंबेडकर की एकमात्र दलित नेता के रूप में पहचान को कमजोर किया जा सके. 1935 में अंबेडकर ने यह घोषणा की कि वह हिंदू धर्म में जन्म लेने के बावजूद उसे छोड़ देंगे, और इसके बाद हिंदू महासभा ने उन्हें समझाने की कोशिश की. हिंदू महासभा ने इस समय कांग्रेस के समर्थन से अंबेडकर के विरोध में दलित नेताओं को बढ़ावा दिया, जिनमें जगजीवन राम शामिल थे, जो बाद में कांग्रेस में शामिल हुए और दलित समुदाय के प्रमुख नेता बने. 1940 के दशक में, अंबेडकर ने कांग्रेस का समर्थन प्राप्त किया. 1946 में, कांग्रेस के समर्थन से ही अंबेडकर भारतीय संविधान सभा में शामिल हुए और 1947 में नेहरू सरकार में शामिल हुए. उन्होंने भारतीय संविधान का मसौदा तैयार किया, जिसमें कांग्रेस ने उन्हें पूर्ण स्वतंत्रता दी. हालांकि, हिंदू महासभा और अंबेडकर के बीच मतभेदों का कारण उनकी बौद्ध धर्म में रूपांतरण की योजना थी. 1956 में, अंबेडकर ने हजारों अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धर्म अपनाया. वी. डी. सावरकर, जो हिंदू महासभा के प्रमुख थे, उन्होंने अंबेडकर के धर्म परिवर्तन पर तीव्र आलोचना की. उन्होंने कहा कि अंबेडकर का बौद्ध धर्म अपनाने से कोई फर्क नहीं पड़ेगा, क्योंकि उनके अनुयायी फिर भी जातिवाद का शिकार रहेंगे. इसके अलावा, सावरकर ने यह भी कहा कि अंबेडकर की बौद्ध धर्म में रूपांतरण की असल वजह हिंदू धर्म से एक अलग राज्य की स्थापना की योजना थी. क्रिस्तोफ़ जेफ़रलो के लेख का कुल मिलाकर लब्बोलुआब यही है कि आज के भाजपा नेताओं ने इतिहास को ठीक से पढ़ा होता, तो वे समझ पाते कि सावरकर और अन्य हिंदू राष्ट्रीयतावादी नेताओं ने अंबेडकर का कांग्रेस से अधिक विरोध किया था.
कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक खुला खत लिखा है. प्रेम और सद्भावना की उनकी बातों के बरक्स जो वो हिन्दुस्तान से दूर दूसरे देश की जमीन पर कर रहे हैं. दिग्विजय सिंह ने लिखा- 'माननीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी आप का कुवैत में भाषण सुना. उसकी मैं प्रशंसा करता हूं. मैं आप का गोधरा कांड के बाद से सब से बड़ा आलोचक रहा हूं. आप ने इस देश में हिंदुओं और अल्प संख्यकों के बीच में जो नफ़रत का ज़हर घोल दिया है, उसे संभालना बहुत मुश्किल हो गया है. बोतल से “नफ़रत का जिन्न” निकालना आसान है, उसे वापस बोतल में डालना आसान नहीं है. आपने अपने राजनैतिक स्वार्थ के लिए अपना “राज धर्म” ना निभा कर नफ़रत का ज़हर इस देश के बच्चों में और नौजवानों में भर दिया है. अब आप और आरएसएस भारत को “विश्वगुरु” बनाने के लिए “विश्वबंधु” बनने का संदेश दे रहे हैं. यही बात अब आप के विदेश मंत्री जी भी कर रहे हैं. क्या आप विदेश में यह भाषण देने के बजाय भारत में नहीं दे सकते? यहाँ तो आपका भाषण “नफ़रत का ज़हर” उगलता है बाहर जा कर विशेष कर इस्लामिक देशों में आप “विश्व बंधुतत्व” की वकालत करते हैं, पर भारत में “हिन्दुत्व” की पैरवी करते हैं! सावरकर जी ने स्वयं कहा है “हिंदुत्व” का “हिंदू धर्म यानि की सनातन धर्म” से कोई लेना देना नहीं है. इसलिए आप से एक ही निवेदन है. राहुल गाधी का “नफ़रत छोड़ो भारत जोड़ो” का संदेश जन-जन तक पहुंचाइए, जिससे सनातन धर्म का “वासुदेव कुटुम्बकम” का संदेश जन-जन तक पहुँचे. भारत माता की जय. हम सब एक हैं. जय सिया राम.'
संपर्क से बाहर इंसानों की बिरादरी मिली ब्राजील में… उनके पहले फ़ोटो
ब्राजील के वर्षा वन में स्वचालित कैमरों से ली गई नई तस्वीरों में देखा गया है कि अनकॉन्टैक्टेड जनजातियाँ, जैसे मासाको समुदाय, बाहरी दबाव के बावजूद समृद्धि की ओर बढ़ रही हैं. मासाको की आबादी 1990 के दशक से दोगुनी होकर अब लगभग 200 से 250 लोगों तक पहुंच गई है. यह समुदाय गुआपोरे नदी के किनारे स्थित है और उनकी भाषा, सामाजिक संरचना और मान्यताएँ अभी भी रहस्यमय बनी हुई हैं. ब्राजील की राष्ट्रीय आदिवासी जनजाति फाउंडेशन (Funai) ने इन जनजातियों की रक्षा के लिए सालों काम किया. मासाको के क्षेत्र में अवैध खनन, लॉगिंग और ड्रग तस्करी जैसी गतिविधियों से उनकी रक्षा के लिए Funai ने विशेष रणनीतियाँ अपनाईं हैं, जैसे कि जमीन पर छिपे हुए लकड़ी के कांटे लगाना ताकि बाहरी लोग इन क्षेत्रों में प्रवेश न कर सकें. अन्य अनकॉन्टैक्टेड जनजातियाँ, जैसे पर्डो रिवर कवाहिवा भी बढ़ती आबादी का उदाहरण पेश कर रही हैं. ब्राजील ने 1987 में संपर्क न करने की नीति अपनाई थी, जिससे इन जनजातियों की रक्षा में सफलता मिली है.
भोपाल : जंगल में एसयूवी से 52 किलो सोना और 9.86 करोड़ रुपये कैश मिले
आयकर विभाग ने शुक्रवार को भोपाल के पास जंगल में एक लावारिस टोयोटा इनोवा क्रिस्टा से 52 किलोग्राम सोना और 9.86 करोड़ रुपये नकद बरामद किए. अधिकारियों को संदेह है कि जब्ती रियल एस्टेट व्यवसायों को लक्षित करने वाली चल रही बहु-एजेंसी छापों से जुड़ी हो सकती है. प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), लोकायुक्त ने लावारिस एसयूवी मिलने से ठीक एक दिन पहले, क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय के पूर्व कांस्टेबल सौरभ शर्मा के आवास पर छापेमारी कर 1 करोड़ रुपये नकद और 40 किलोग्राम चांदी जब्त की थी.
मोहाली में छह मंजिला इमारत गिरने से 2 की मौत, 24 घंटे चला बचाव अभियान
पंजाब के मोहाली जिले में शनिवार को एक छह मंजिला इमारत ढहने से दो लोग दब कर मर गए. मलबे के भीतर और कई लोग फंस गए थे. एनडीआरएफ और स्थानीय पुलिस ने लगातार 24 घंटे रविवार की शाम तक संयुक्त बचाव अभियान चलाकर अन्य सभी को सुरक्षित निकाल लिया. अभियान में करीब 600 कर्मियों ने हिस्सा लिया.
भारत ने पहला महिला अंडर-19 टी-20 एशिया कप जीता, फाइनल में बांग्लादेश को हराया
भारत ने रविवार को पहले महिला टी20 अंडर-19 एशिया कप के फाइनल में बांग्लादेश को 41 रन से हराकर खिताब अपने नाम किया. बता दें कि पहली बार महिला टी-20 एशिया कप का आयोजन किया गया था. त्रिशा की अर्धशतक की बदौलत (52 रन) की बदौलत भारत को सात विकेट पर 117 रन बनाए. बांग्लादेश की फरजाना ने 4 विकेट निकाले. वहीं बांग्लादेश को 18.3 ओवर में 76 रन पर समेट दिया. जुआरिया फ़िरदौस ने सबसे ज्यादा 22 रन बनाए. भारत की तरफ से आयुषी ने 3, सोनम ने 2, और परुनिका ने 2 विकेट लिए.
जर्मनी : कार से हुए हमले में 5 की मौत और सात भारतीय समेत 200 घायल
पूर्वी जर्मनी के मैगडेबर्ग शहर के जर्मन क्रिसमस बाजार में एक सऊदी मूल के 50 वर्षीय डॉक्टर ने कार से टक्कर मारकर घातक हमला किया. हमले में 9 साल का बच्चा समेत 5 लोगों की मौत हो गई और सात भारतीय समेत 200 से ज्यादा घायल हो गए. घायल भारतीयों में से तीन की हालत ठीक है. उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है. बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास ने शनिवार देर रात जानकारी दी. भारतीय अधिकारी पीड़ितों और उनके परिवार के संपर्क में हैं. वे उन्हें हर संभव सहायता उपलब्ध करा रहा है.
त्रिभुवन: क्या हमें केकिस्टोक्रेसी से ख़तरा है?
केकिस्टोक्रेसी (Kakistocracy) यानी वही हालात जिसकी तरफ दुनिया के कई विकासशील देशों की तरह हमारा देश तेज़ी से बढ़ रहा है. केकिस्टोक्रेसी यानी नीचे से लेकर ऊपर तक शासन व्यवस्था वह प्रणाली, जिसमें सबसे बुरे, अनप्रोफेशनल, नाक़ाबिल या सबसे अनैतिक लोग निर्णायक या फ़ैसलों को लागू करने वाले हों. यह केवल राजनीति या नौकरशाही का मामला नहीं है. यह देश की व्यवस्था को संचालित करने वाली पूरी प्रणाली से जुड़ा शब्द है.
हमारी डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूशंस बहुत मज़बूत रहे हैं. लेकिन जो हमारा भारत कभी एक सशक्त लोकतंत्र था, अब संस्थागत कमजोरियों के संकेत दिखा रहा है. भारत एक वाइब्रेंट डेमोक्रसी रहा है.
राजनीतिक तौर पर ही नहीं, सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक-सामाजिक तौर पर भी. यहाँ एक कुछ नहीं है. सब या तो द्वैत है, या त्रैत है या पंच, षड्, अष्ट है. हमारी तो दिशाएं भी दस हैं. लेकिन अब एक जैसा करने की जो बयार बह रही है, वह हमारी आत्मिक लोकतांत्रिकता की परंपराओं से मेल नहीं खातीं. न्यायपालिका, मीडिया और नौकरशाही जैसे प्रमुख स्तंभ, जो कभी अपनी स्वतंत्रता के लिए प्रशंसा पाते थे, अब स्वार्थी हितों से प्रभावित होने के आरोप झेल रहे हैं.
त्रिभुवन का लम्बा, दिलचस्प और पूरा लेख आप यहाँ पढ़ सकते हैं.
आल वी इमेजिन.. के ख़िलाफ क्यों रहा फिल्म फेडरेशन
पायल कापड़िया की फिल्म ‘ऑल वी इमेजिन एज लाइट’ धीरे-धीरे ऑस्कर पाने की तरफ बढ़ रही है, जबकि भारत की आधिकारिक संस्था ने उसे तकनीकी तौर पर ख़राब और कम भारतीयता वाली फिल्म बताया था. फिल्म फेडरेशन ऑफ इंडिया अभी भी अपनी बात पर अड़ा हुआ है. उसने पायल की फिल्म को दरकिनार कर किरण राव की ‘लापता लेडीज़’ को आगे बढ़ाया था, जो अब ऑस्कर की रेस से गुमशुदा हो गई है. अपनी सफाई में इस साल के भारतीय चयन समिति के अध्यक्ष, असम के फिल्म निर्माता जानू बरुआ ने हिंदुस्तान टाइम्स से बातचीत में बताया कि 'ऑल वी इमेजिन एज लाइट' फिल्म तकनीकी रूप से बहुत ही खराब थी और यह 'भारतीयता' की कमी लिए हुए है, जिसके चलते इसे समिति ने नजरअंदाज किया. हालांकि, पायल कापड़िया इसलिए भी जानी जाती हैं कि एफटीइआईआई पुणे में हुए छात्र प्रदर्शनों के दौरान वह शामिल थीं और खूब सुर्खियां भी उनके आंदोलन ने तब बटोरी थी.
जलवायु परिवर्तन भारत में पलायन बढ़ाएगा
'नेचर' में प्रकाशित हिमानी उपाध्याय की एक रिपोर्ट कहती है- वैज्ञानिक सहमति है कि जलवायु परिवर्तन का प्रवास पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा. यह रिपोर्ट उत्तराखंड के 13 गांवों में जलवायु परिवर्तन और निरंतर प्रवास से प्रभावित समुदायों पर केंद्रित अध्ययन पर है. उत्तराखंड को अध्ययन के लिए तीन कारणों से चुना गया. हिमालयी क्षेत्र में इसका भौगोलिक स्थान, जहां जलवायु जोखिम अधिक हैं. कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के कारण बढ़ता प्रवास. उत्तराखंड में परिवारों के स्थायी प्रवास और पहाड़ी गांवों के जनसंख्या ह्रास को एक नीति समस्या के रूप में देखा गया. जलवायु किसी विशेष क्षेत्र में मौसम का दीर्घकालिक पैटर्न है. मौसम घंटे-दर-घंटे, दिन-प्रतिदिन, महीने-दर-महीने या यहां तक कि साल-दर-साल बदल सकता है. किसी क्षेत्र के मौसम के पैटर्न को, आमतौर पर कम से कम 30 वर्षों तक ट्रैक किया जाता है, और उसे वहां की जलवायु माना जाता है.
टेक दिग्गज नारायण मूर्ति ने चेतावनी दी कि जलवायु परिवर्तन का समय रहते समाधान नहीं किया गया तो भविष्य में तापमान और मौसम के बदलाव के कारण भारत के कई स्थानों के रहने योग्य न होने पर लोग बड़े पैमाने पर बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद की ओर पलायन कर सकते हैं. उन्होंने कहा कि भारत और कुछ अफ्रीकी देश तापमान वृद्धि के प्रति बेहद संवेदनशील हैं, और एक अनुमान के अनुसार, अगले 20-25 वर्षों में भारत के कुछ हिस्से रहने लायक नहीं रहेंगे, जिससे इन इलाकों से बड़े पैमाने पर पलायन हो सकता है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि बेंगलुरु, पुणे और हैदराबाद जैसे शहर भी ट्रैफिक और प्रदूषण जैसी समस्याओं के कारण रहने के लिए कठिन हैं. पुणे में एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने कहा, "हम भारतीयों, विशेष रूप से कॉर्पोरेट क्षेत्र को राजनेताओं और नौकरशाहों के साथ मिलकर काम करना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि बड़े पैमाने पर पलायन न हो. यही सबसे बड़ी चुनौती है."
यूक्रेन के सुपर हैवीवेट घूंसेबाज ओलेक्सांद्र उसिक ने टायसन फ्यूरी को लगातार दूसरी बार हराया
यूक्रेन के ओलेक्सांद्र उसिक ने शनिवार को रियाद के किंगडम एरेना में एक रोमांचक मुकाबले में ब्रिटेन के टायसन फ्यूरी के खिलाफ दूसरी बार जीत दर्ज कर सर्वसम्मत निर्णय से घूंसेबाजी में अपना डब्ल्यूबीए (सुपर), डब्ल्यूबीओ और डब्ल्यूबीसी विश्व हैवीवेट खिताब बरकरार रखा. वो अपराजित रहे. अपने बड़े प्रतिद्वंद्वी को ऊंचाई, वजन और पहुंच में लाभ देते हुए, उसिक ने पूरे समय शानदार मुकाबला किया और तीनों जजों के स्कोरकार्ड पर 116-112 से जीत हासिल की. उसिक ने मई में अपनी सफलता के बाद एक बार फिर फ्यूरी को हराया, जिससे वह निर्विवाद चैंपियन बन गए. मुकाबले के बाद, उसिक ने अपनी जीत को अपनी टीम और उक्रेनी जनता को समर्पित किया, जबकि फ्यूरी ने हार स्वीकार करते हुए अपनी हार को एक "बेहद करीबी मुकाबला" बताया.
चलते चलते: जापानी स्कूल शिक्षा पर बनी ये डॉक्यूमेंट्री
'न्यूयॉर्क टाइम्स' के लिए एमा रयान यामाजाकी का लेख और डॉक्यूमेंट्री एक बच्ची और उसके एक संगीत प्रदर्शन में शामिल होने की कहानी है. इसके जरिये जापानी शिक्षा व्यवस्था को समझने की कोशिश की है. बात तो इतनी ही है कि उस बच्ची को सही ताल पर सिम्बल पर छड़ी गिरानी है… पर वह पहली क्लास के बच्चों के साथ एक सामूहिक प्रदर्शन का हिस्सा है और शुरू में उससे गफलत हो जाती है. पर अपने संगीत शिक्षक, क्लास टीचर, बाकी साथियों के साथ वह सही तरह से बजाने में सफल हो जाती है. इस फिल्म के जरिये जापानी स्कूल व्यवस्था की झलक मिलती है. टीमवर्क, अनुशासन और व्यक्तिगत विकास के बीच के नाजुक संतुलन को रेखांकित किया जा रहा है. यामाजाकी की रिपोर्ट कहती है कि जापान में स्कूल प्रदर्शन, जो अक्सर सांस्कृतिक या नाटकीय कार्यक्रम होते हैं, वे शिक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं. मोटे तौर पर माहौल प्रोत्साहन का है. मेलजोल का. उनके अनुभवों को साझा कर. बच्चों की बातों को गंभीरता से लेने का भी. आप इस फिल्म में बहुत सारी ऊर्जा को महसूस कर सकते हैं, उनके बीच में स्पर्धा का भी, पर साथ ही एक संवाद का. अगर आप शिक्षा से जुड़े हैं या फिर आपके आस पास बच्चे हैं तो इस डॉक्यूमेंट्री को देखिये. नहीं जुड़े है तब भी.
आज के लिए इतना ही. हमें बताइये अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ. हरकारा सब्सटैक पर तो है ही, आप यहाँ भी पा सकते हैं ‘हरकारा’...शोर कम, रोशनी ज्यादा. व्हाट्सएप पर, लिंक्डइन पर, इंस्टा पर, स्पोटीफाई पर , ट्विटर / एक्स और ब्लू स्काई पर.