13 नवम्बर 2024: फिर भभका मणिपुर, चुनाव से पहले झारखंड में ईडी, हाथीमार कोदो का रहस्य, धारावी कितना निर्णायक, बिजली मीटर को लेकर गुस्से में किसान, बेच रहे थे फेक पिकासो, सफाई के काम पर सवर्णों का कब्जा
निधीश त्यागी, साथ में राजेश चतुर्वेदी, गौरव नौड़ियाल
सुर्खियाँ: मणिपुर में हिंसा फिर भभक रही है. सोमवार को हिंसा में मारे जाने वालों की संख्या पिछले साल की हिंसा के बाद सबसे ज्यादा थी. सोमवार को सीआरपीएफ और पुलिस से झड़प में 11 संदिग्ध कुकी आतंकवादी मारे गये थे, जबकि मंगलवार को मैती समुदाय की तीन महिलाएं और तीन बच्चों के गायब होने की खबर है. जिरीबाम में कर्फ्यू लगा दिया गया है. कुकी-जो काउंसिल का दावा है कि मारे गये व्यक्ति दरअसल गाँव के ही वालंटियर हैं. उन्होंने पहाड़ी इलाके में बंद का आह्वान किया है और उधर 13 मैती संगठनों नें गायब हुए लोगों को सलामत वापस लाने की मांग को लेकर बंद की घोषणा की है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक संदिग्ध आतंकवादियों नें मैती इलाकों के घरों और मकानों पर हमले किया और उसके बाद पुलिस स्टेशन और सीआरपीएफ चौकी पर गोलियाँ चलाईं.
बुधवार को झारखंड में विधानसभा चुनावों का पहला चरण है और यहाँ चुनाव प्रचार करते हुए गृहमंत्री ने यूनिफॉर्म सिविल कोड लाने की बात ये कहते हुए दुहराई, कि वह राज्य के आदिवासियों पर लागू नहीं होगा.
बांग्लादेशी घुसपैठ मामले में ईडी की टीम रांची, पाकुड़ और पश्चिम बंगाल के 24 परगना और कोलकाता में रेड की. केंद्रीय एजेंसी की टीम चुनाव से एक दिन पहले मंगलवार सुबह रांची के बरियातू स्थित होटल स्काई लाइन सहित 6 ठिकानों पर पहुंची और तलाशी लेना शुरू कर दी. ईडी ने 16 सितंबर को झारखंड में बांग्लादेशी महिलाओं की तस्करी और संदिग्ध घुसपैठ की जांच के लिए मनी लॉन्ड्रिंग के तहत मामला दर्ज किया था. मामला झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठ से जुड़ा है. दअरसल, सितंबर में देह व्यापार मामले में झारखंड पुलिस के छापेमारी के दौरान कुछ महिलओं को गिरफ्तार किया गया, जिसके बाद जांच में यह बात सामने आई थी कि उन महिलाओं को बांग्लादेश से देह व्यापार के लिए बुलाया गया था. जांच एजेंसी के झारखंड कार्यालय द्वारा दोनों पड़ोसी राज्यों में कुल 17 स्थानों पर छापे डाले जा रहे हैं.
उधर झारखंड में भाजपा के लिए चुनाव प्रचार करते मिथुन चक्रवर्ती को पता भी नहीं चला कि उनका बटुवा किसी ने झटक लिया. बहुत देर तक मंच से बटुवा लौटाने की अपील होती रही.
प्रत्यक्ष कर संग्रह में 15.41% की वृद्धि, ₹12.11 लाख करोड़ का संग्रह : वित्तीय वर्ष 2024-25 के पहले सात महीनों में, यानी 1 अप्रैल से 10 नवंबर तक भारत में शुद्ध प्रत्यक्ष कर संग्रह में 15.41% की वृद्धि दर्ज हुई है, जो करीब ₹12.11 लाख करोड़ तक पहुंच गया है. इसमें ₹5.10 लाख करोड़ का शुद्ध कॉर्पोरेट कर और ₹6.62 लाख करोड़ का गैर-कॉर्पोरेट कर मसलन व्यक्तियों, एचयूएफ, फर्मों द्वारा भरे गए कर शामिल हैं. इसके अतिरिक्त, अन्य कर जैसे कि इक्वलाइजेशन लेवी और उपहार कर से भी सरकार के खजाने में करीब ₹35,923 करोड़ रूपया आया है. 1 अप्रैल से 10 नवंबर, 2024 तक, सरकार ने ₹2.92 लाख करोड़ के रिफंड जारी किए हैं, जो पिछले वर्ष की तुलना में 53% की वृद्धि दर्शाता है.
भारत में अक्टूबर में खुदरा महंगाई दर 6.21 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो पिछले 14 महीनों में सबसे अधिक है.इसका प्रमुख कारण खाद्य पदार्थों की कीमतों में भारी वृद्धि, खासकर फलों, सब्जियों, मांस, मछली और तेलों व वसा की कीमतों में उछाल बना. राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) द्वारा मंगलवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, संयुक्त खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) के आधार पर खाद्य महंगाई अक्टूबर में 10.87 प्रतिशत तक पहुंच गई, जो पिछले 15 महीनों में सबसे उच्चतम स्तर है. सितंबर में यह 9.24 प्रतिशत और पिछले साल अक्टूबर में 6.61 प्रतिशत थी.
भारत सरकार ने कहा है कि जो गैर-सरकारी संगठन (NGO) “विकास विरोधी गतिविधियों” या जबरन धर्मांतरण में शामिल पाए जाएंगे, उनके विदेशी फंडिंग लाइसेंस रद्द कर दिए जाएंगे. इसके अतिरिक्त, यदि किसी संगठन की गतिविधियाँ जैसे “दुर्भावनापूर्ण इरादे से प्रदर्शन भड़काना, आतंकवादी या राष्ट्रविरोधी संगठनों से संबंध रखना” आदि पाई जाती हैं, तो उनका विदेशी फंडिंग परमिट भी रद्द किया जा सकता है.
हरिद्वार प्रशासन ने हर की पैड़ी पर होने वाले उत्तराखंड स्थापना दिवस समारोह के लिए तीन मुस्लिम विधायकों को आमंत्रित किया है, पर घाट की व्यवस्था देखने वाली गंगा सभा संगठन ने साफ कर दिया है कि गैर हिंदुओं को वहाँ आने की अनुमति नहीं है और उनका दावा है कि यह कायदा अंग्रेजों के समय से चला आ रहा है. बजरंग दल ने दावा किया कि ‘प्रशासनिक अधिकारियों नें जहाँ अपनी गलती मान ली और कहा कि विधायक नहीं आएंगे.’ जबकि खुद विधायकों ने कहा कि वे किसी और वजह से समारोह में नहीं जा रहे.
अपने बैग की तलाशी का खुद वीडियो बनाया उद्धव ने
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री और शिवसेना (यूबीटी) सुप्रीमो उद्धव ठाकरे के हेलिकॉप्टर की 24 घंटे में दूसरी बार चेकिंग हुई, जिससे वो झुंझला गए. उन्होंने इसका वीडियो बनाकर अपने सोशल मीडिया हैंडल पर डाला है. उद्धव मंगलवार को उस्मानाबाद में औसा सीट पर प्रचार करने आए थे. इस दौरान चुनाव आयोग के कर्मचारियों ने उनके हेलिकॉप्टर की चेकिंग की. इससे पहले 11 नवंबर को यवतमाल के वनी एयरपोर्ट पर उनके बैग की जांच की गई थी. चुनाव आयोग की कार्रवाई पर उद्धव ठाकरे नाराज हो गए और उन्होंने कहा कि मोदी और शाह के बैग की भी जांच होनी चाहिए.
उधर भाजपा के संकटमोचक माने जाने वाले गिरीश महाजन जामनेर में बढ़ते असंतोष का सामना कर रहे हैं. वो इस सीट को लंबे समय से सीट जीत रहे थे, लेकिन अब बदली परिस्थितियों ने उनका गणित गड़बड़ा दिया है. कपास किसानों की समस्याओं, सिंचाई सुविधाओं की कमी और बेरोजगारी के मुद्दों से इलाके की सियासत ने रंग बदल लिया है. एक समय भाजपा का गढ़ रहा जामनेर, अब किसानों और बेरोजगारों के सवालों से घिरा है और इस बार गिरीश महाजन के वर्चस्व को उनके ही पूर्व सहयोगी दिलीप खोडपे चुनाव मैदान में चुनौती दे रहे हैं. लगातार पांच बार सीट जीतने के बावजूद, इस बार राह आसान नहीं रह गयी है. कपास के दाम 13 साल बाद भी 6,000 रुपये प्रति क्विंटल पर होने से किसान बेहद असंतुष्ट हैं. इस सीट के पूरे गणित को सुधीर सूर्यवंशी ने इंडियन एक्सप्रेस के लिए लिखे अपने लेख में विस्तार से समझाया है.
10 हजार से ज्यादा छात्र प्रयागराज में योगी सरकार के खिलाफ़ जुटे :उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (यूपीपीएससी) के एक शिफ्ट में होने वाली परीक्षा को दो शिफ्ट में बांटने के निर्णय को लेकर अभी भी बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है. छात्र दो दिन से आयोग के बाहर दिन-रात हजारों की संख्या में डटे हुए हैं. यूपीएससी दफ्तर के सामने ढोल-ताशे के साथ प्रतियोगी छात्रों के प्रदर्शन के वीडियो भी सामने आए हैं. छात्रों ने भी अपना एक नारा गढ़ लिया है- 'न बटेंगे न हटेंगे'. इस नारे वाले हजारों पर्चे छात्रों के बीच वितरित किए गए हैं. अजीत अंजुम के यूट्यूब चैनल पर मामले की विस्तृत रिपोर्ट.
नौकरी पर सवर्ण, पर काम पर दलित
पुष्पा देवी पिछले 30 वर्षों से आधे वेतन पर जोधपुर नगर निगम के लिए अनौपचारिक रूप से सफाई का काम कर रही हैं. इसे 'बदली' या '2 बाय 2' कहा जाता है, जिसका मतलब है किसी और शख्स के बदले काम करना. इसी गड़बड़झाले को 'द प्रिंट' के जरिये सामने लायी हैं शुभांगी मिश्रा. राजस्थान में 2018 के आरक्षण-आधारित भर्ती प्रणाली लागू होते ही वाल्मीकि समुदाय के लोग जो पीढ़ियों से इस काम में लगे थे, सरकारी नौकरियों से वंचित हो गए हैं. आरक्षण प्रणाली लागू होने के बाद, ऊंची जातियों के लोग इन नौकरियों को प्राप्त कर रहे हैं, लेकिन उनके बदले सफाई का काम, कम पैसे में वाल्मीकि समुदाय के लोग ही कर रहे हैं. "बदली" की इस व्यवस्था में एक आदमी के पास काम है और एक के पास आराम के बावजूद पूरी पगार.
फेक न्यूज अलर्ट: करबला की तस्वीर को ‘गज़वा-ए-हिन्द’ का आतंक बताया अमर उजाला, नई दुनिया, पंजाब केसरी समेत कई संस्थानों ने
कर्बला की जंग दर्शाती तस्वीर को ‘गज़वा-ए-हिन्द’ का आतंक बताकर सांप्रदायिक ऐंगल दिया गया. ‘ऑल्ट न्यूज़’ ने इस पूरे मामले का सच बताया है. मामला मध्य प्रदेश में इंदौर के कागदीपुरा क्षेत्र के एक मस्जिद पर लगे पोस्टर का है, जिसमें बुर्का पहनी महिला हाथ में हरे रंग का झंडा लिए खड़ी दिख रही है. साथ ही तस्वीर के ऊपरी हिस्से में अरबी भाषा में कुछ लिखा है. भाजपा विधायक मालिनी गौड़ के बेटे और भाजपा नगर उपाध्यक्ष एकलव्य गौड़ ने मस्जिद पर लगे इस पोस्टर की तस्वीर शेयर करते हुए आरोप लगाया कि ये “गज़वा-ए-हिंद” के आतंक को दर्शाता है और इसे शहर को आतंकित करने के मंसूबों से लगाया गया है. देखते ही देखते मामला गरमा गया और भाजपा के वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री कैलाश विजयवर्गीय ने भी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि अगर आरोपी मेरे हाथ लग गए तो उन्हें उल्टा लटकाकर शहर में घुमाएंगे. आरएसएस के मुखपत्र पाँचजन्य के अलावा ऑपइंडिया, हिन्दू पोस्ट समेत कई प्रमुख न्यूज़ आउटलेट ने भी इस खबर को बिना वेरीफाई किये चलाते हुए ऐसा ही दावा किया, इनमें ज़ी न्यूज़, न्यूज़24, न्यूज़18, इंडिया टुडे ग्रुप का एमपी तक, अमर उजाला, नई दुनिया, पंजाब केसरी शामिल हैं.
हिंदू राष्ट्र की बात करते बाबा का शो हटवाया गया न्यूज18 से
पुणे के सामाजिक कार्यकर्ता इंद्रजीत घोरपड़े की शिकायत पर न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी (NBDSA) ने न्यूज़18 को आदेश दिया है कि वे 10 जुलाई, 2024 को बाबा बागेश्वर उर्फ़ धीरेंद्र शास्त्री का इंटरव्यू हटाएं. इस इंटरव्यू में उन्होंने "जादुई शक्तियों" से जानवर खोजने और बीमारियों का इलाज करने जैसे दावे किए, साथ ही हिंदू राष्ट्र की स्थापना की बात की. शास्त्री ने कहा कि केवल हिंदू राष्ट्र की स्थापना से हिंदू-मुस्लिम संघर्ष रुकेगा और बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सकेगी. ऑल्ट न्यूज़ ने इस मामले में एक रिपोर्ट की है.
रेल हादसा जो टल सकता था
पश्चिम बंगाल में जून में हुई कंचनजंगा एक्सप्रेस और एक मालगाड़ी के बीच हुई टक्कर को 'ऐक्सीडेंट-इन-वेटिंग' (लंबे समय से होने वाला हादसा) के रूप में बताया गया है और इसे टाला जा सकता था. इंडियन एक्सप्रेस के लिए की गयी धीरज मिश्रा की रिपोर्ट बताती है कि रेलवे सुरक्षा आयुक्त (CRS) ने कंचनजंगा एक्सप्रेस और मालगाड़ी के बीच हुई टक्कर की जांच के बाद अपनी अंतिम रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया है. इस दुर्घटना में 10 लोगों की मौत हो गई और कई लोग घायल हो गए थे. साथ ही इसमें कवच नामक स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली को प्राथमिकता के साथ लागू करने की सिफारिश की है. रिपोर्ट में जिन प्रमुख कारणों का उल्लेख किया गया, वे हैं -
गलत अधिकार पत्र: मालगाड़ी के चालक को गलत कागजी अधिकार (T/A 912) दिया गया था, जिसमें कोई स्पीड गाइडलाइन नहीं दी गई थी, जिससे हादसा होने का खतरा बढ़ गया था.
ट्रेन ऑपरेशन में गड़बड़ी: रिपोर्ट में इसे "ट्रेन ऑपरेशन में गलती" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसमें यह उल्लेख किया गया है कि चालक को सही जानकारी नहीं दी गई थी, जिससे दुर्घटना हुई.
ऑपरेशन में अस्पष्टता: रिपोर्ट ने यह भी बताया कि कई ट्रेनें जो खराब सिग्नल से गुज़रीं, उनकी स्पीड के पैटर्न में अंतर था, जिससे चालक को सही निर्णय लेने में परेशानी हुई.
प्रणालीगत समस्याएँ: रिपोर्ट ने रेलवे अधिकारियों की प्रशिक्षण की कमी पर भी सवाल उठाया और कहा कि ट्रैफिक निरीक्षकों और लोको निरीक्षकों को सुरक्षित संचालन के लिए आवश्यक प्रशिक्षण की कमी थी.
नये बिजली मीटरों के खिलाफ़ सड़क पर क्यों उतर रहे है यूपी के किसान?
पिछले एक साल में कई राज्यों के अलग-अलग हिस्से से एक खबर धीरे-धीरे सामने आने लगी- 'पुराने मीटर बदलने का कोई चार्ज नहीं, लगेंगे स्मार्ट मीटर'! असल में ख़बर थी प्रीपेड स्मार्ट बिजलीमीटर प्रोजेक्ट की, जिसका ठेका अडानी समूह को मिला था. जब उत्तर प्रदेश में स्मार्ट मीटर का शोर गाँवों तक पहुंचा और पहले ही महंगी बिजली की मार झेल रहे किसान को मसला समझ आया तो वो विरोध करने लगे.. पश्चिम उत्तर प्रदेश में तो ये मामला पिछले कुछ दिनों में इतना गरमाया हुआ है कि गाँवों में किसानों की पंचायतें, इसी मुद्दे पर हुई हैं और आगे वो दिल्ली जाकर इस मामले की लड़ाई को लड़ने की तैयारियां कर रहे हैं.
उत्तर प्रदेश के कई इलाकों में किसानों का विरोध अडानी ग्रुप के मीटर इंस्टॉलेशन योजना के खिलाफ लगातार बढ़ रहा है. किसानों को डर है कि यह योजना बिजली की दरों में वृद्धि का कारण बनेगी और पहले से ही महंगी बिजली दरों का असर बड़े स्तर पर किसानों को होगा. किसान संगठन इस परियोजना को बंद करने की मांग उठा रहे हैं.
अडानी समूह को राज्य में प्रीपेड बिजली मीटर लगाने का ठेका दिया गया है. हालाँकि फरवरी 2023 में जब हिंडनबर्ग ने अडानी समूह को लेकर खुलासे किये थे तब एक ख़बर आयी थी कि उत्तर प्रदेश में अडानी ट्रांसमिशन को मिलने वाला प्रीपेड स्मार्ट मीटर का टेंडर निरस्त कर दिया गया है. हालांकि, स्मार्ट मीटर लगने का काम फिर से शुरू हो गया है. अडानी समूह ने उत्तर प्रदेश में स्मार्ट प्रीपेड मीटर प्रोजेक्ट के लिए ₹23,000 करोड़ रुपए का टेंडर जीता है. यह परियोजना भारत सरकार की उस योजना का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य पूरे देश में बिजली वितरण प्रणाली को आधुनिक बनाना है. उत्तर प्रदेश में 2.85 करोड़ मीटर लगाने का लक्ष्य है. इससे बिजली वितरण कंपनियों की बिलिंग प्रणाली तो सुधरेगी ही, बिजली चोरी भी ख़त्म हो जाएंगी.
केंद्र की यह योजना ₹3.03 लाख करोड़ के बजट से चल रही है और इसे पूरा करने का लक्ष्य साल 2025 तक रखा गया है. इस प्रोजेक्ट से अडानी समूह को भारत के स्मार्ट मीटर बाजार में बड़ी हिस्सेदारी मिली है. इस क्षेत्र में अडानी का हिस्सा 30% तक पहुंचने का अनुमान है, जिससे उसकी ऊर्जा क्षेत्र में बढ़ती प्रभुता और संभावित दबदबा बना रहेगा. अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस ने भारत में तेजी से बढ़ते स्मार्ट मीटरिंग बाजार में 25% बाजार पर कब्ज़े का लक्ष्य रखा है.
इस कंपनी ने ने विभिन्न वितरण कंपनियों से करीब 2 करोड़ स्मार्ट मीटर का ऑर्डर प्राप्त किया है, जिसमें बेस्ट मुंबई (11 लाख), महाराष्ट्र (1.15 करोड़), उत्तराखंड (6 लाख), आंध्र प्रदेश (41 लाख), बिहार (28 लाख) और असम (8 लाख) शामिल हैं. कंपनी अभी ₹27,000 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है और ये सिर्फ मीटर बदलने का कारोबर है.
इसके अलावा अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस की वितरण शाखा अडानी इलेक्ट्रिसिटी मुंबई ने पहले चरण के तहत लगने वाले 7 लाख स्मार्ट मीटरों में से अधिकांश पहले ही स्थापित कर दिए हैं. यह रणनीति कंपनी को भारत में स्मार्ट मीटर के रोलआउट में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करती है, जो सरकार के 2026 तक 25 करोड़ स्मार्ट मीटर स्थापित करने के लक्ष्य के अनुरूप है. अडानी एनर्जी सॉल्यूशंस भारत के ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन क्षेत्र में एकमात्र प्राइवेट सेक्टर की लिस्टेड कंपनी है, जो 14 राज्यों में अपनी उपस्थिति दर्ज कर चुका है और इसका नेटवर्क 20,500 सर्किट किलोमीटर तक फैला हुआ है.
कई जगह शिकायतों के बाद परियोजना पर काम रोक भी दिया गया, हालांकि ऐसा चुनावी राज्य में ही हुआ जहाँ अडानी का काम रुका हो. मुंबई में बृहन्मुंबई ट्रांसपोर्ट ऐंड इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई (बेस्ट) ने आवासीय उपभोक्ताओं के लिए स्मार्ट मीटर लगाने की योजना को फिलहाल रोक दिया है. शिकायतें आई थीं कि मीटर बदलने के बाद बिजली बिल में इज़ाफा हो गया था. अब तक लगभग 3 लाख स्मार्ट मीटर लगाए जा चुके. कहा जा रहा है कि अधिकारी शीघ्र इस मसले पर निर्णय लेंगे. कहना गलत नहीं होगा कि ये निर्णय अब इलेक्शन के बाद ही होगा.
ऐसा नहीं है की मसला सिर्फ स्मार्ट मीटरों का ही हो, किसानों पर विकास पथ पर दोहरी मार पड़ रही है. उधर, लखनऊ में अभी हाल ही में 700 किसान अडानी समूह के खिलाफ धरने पर बैठ गए थे. ये वीडियो देखिये और सुनिए क्या कह रहे हैं ये किसान…
हाथी मार जहरीले कोदो का रहस्य
मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व में दो दिन पहले हाथी के उस बच्चे की भी मौत हो गई, जो अपनी मां से बिछुड़ गया था. 29 अक्टूबर के बाद से 15 दिनों के भीतर नेशनल पार्क में 11 हाथियों की मौत हो चुकी है, लेकिन मीडिया में ऐसी खबरें देखने को नहीं मिली हैं, जिनसे यह स्पष्ट हो सके कि राज्य सरकार ने इन हाथियों की आकस्मिक और असामयिक मौत का कारण आखिर किस बात को माना है? मसलन, क्या ये सभी हाथी स्वाभाविक मौत मरे ; अथवा जहरीला कोदो-बाजरा या मोटा अनाज खाने से उनकी मौत हुई? या फिर जहरीली वस्तु देकर उनको मार दिया गया? मीडिया में जो खबरें आई हैं, वो वन विभाग के अधिकारियों के हवाले से बताती हैं कि हाथियों की मौत माइकोटॉक्सिन (कुछ खास तरह के फफूंदों द्वारा प्राकृतिक रूप से उत्पादित विषैले योगिक) के कारण हुई होगी.
माने, अफसरों के पास भी अनुमान भर है. इसी तरह भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (आईवीआरआई), बरेली की फोरेंसिक रिपोर्ट के हवाले से खबर आई कि हाथियों के विसरा की जांच में ‘न्यूरोटॉक्सिन साइक्लोपियाजोनिक एसिड’ पाया गया. मतलब, हाथियों ने बड़ी मात्रा में खराब कोदो, पौधे, अनाज खाए हैं. नमूने में पाए गए साइक्लोपियाजोनिक एसिड की विषाक्तता की वास्तविक गणना अभी और भी आगे की जा रही है. यह गणना अभी चल रही है या पूरी हो गई? पूरी हो गई है तो उसमें क्या निकला, यह भी मीडिया में नहीं है. बहरहाल, मीडिया में राज्य सरकार का ऐसा कोई अधिकारिक कथन या बयान नजर नहीं आता, जो 11 हाथियों की असामयिक मौत की वजह स्पष्ट करता हो. एक हफ्ते पहले खबर थी कि केंद्र की टीम भी बांधवगढ़ में डेरा डाले है और वह इस बात की जांच कर रही है कि कहीं हाथी जहर देकर तो नहीं मारे गए? अंग्रेजी अखबार “द हिंदू” ने हाथी के बच्चे का फोटो प्रकाशित किया है. बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व का केयरटेकर उसको बोतल से दूध पिला रहा है. शायद उसी दिन वह चल बसा. 10 हाथियों के झुण्ड से यह बच्चा बिछुड़ गया था.
लेकिन, केंद्र की इस टीम ने जांच में क्या पाया, मीडिया में इस बारे में कुछ नहीं है. जबकि मध्यप्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष जीतू पटवारी के इस आरोप को खूब जगह मिली कि हाथियों को जहर दिया गया. किसने दिया, यह जांच का विषय है. पटवारी ने इन्हें सरकारी हत्याएं कहा. पूर्व सीएम कमलनाथ ने भी इस मामले की सीबीआई या न्यायिक जांच की मांग की.
कुलमिलाकर, अभी हाथियों की मौत के कारण पर मीडिया में बहस जारी है. तभी दैनिक भास्कर ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की, जिसका निचोड़ है, “मध्यप्रदेश का वन विभाग कह रहा है कि कोदो खाने से हाथियों की मौत हुई, लेकिन उसी कोदो को बरसों से किसानों के गाय-बैल और अन्य पशु खा रहे हैं, तो वे बीमार क्यों नहीं पड़े? उन्हें कुछ क्यों नहीं हुआ? किसानों का कहना है कि वे खुद कोदो खाने को तैयार हैं. एक किसान ने कहा वह स्वयं कोदो खाता है. कोदो उनके जीवन का आधार है. कोदो खाने से छोटे मवेशी नहीं मरते तो हाथी कैसे मर सकते हैं? किसानों ने यह सवाल भी उठाया है कि फसल नष्ट करने में जल्दबाजी क्यों की गई? जांच पूरी होने तक उसे सुरक्षित रखने की कोशिश क्यों नहीं की गई?
जहां तक कोदो का सवाल है तो गूगल करने पर विकिपीडिया कहता है- कोदो या कोदों या कोदरा (Paspalum scrobiculatum) एक अनाज है जो कम वर्षा में भी पैदा हो जाता है. वैद्यक के मत से यह मधुर, तिक्त, रूखा, कफ और पित्तनाशक होता है. नया कोदो कुरु पाक होता है, फोडे़ के रोगी को इसका पथ्य दिया जाता है. कोदो के दानों को चावल के रूप में खाया जाता है और स्थानीय बोली में ’भगर के चावल’ के नाम पर इसे उपवास में भी खाया जाता है. इसके दाने में 8.3 प्रतिशत प्रोटीन, 1.4 प्रतिशत वसा तथा 65.9 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट पाया जाता है. कोदो-कुटकी मधुमेह नियन्त्रण, यकृत (गुर्दों) और मूत्राशय के लिए लाभकारी होता है. कोदो का ही भाई है क्विनोआ. कई जगह इसे केनुआ या किनोवा भी कहा जाता है. यह भी गुणकारी होता है.
ट्रम्प की जीत पर तालिबान की तालियाँ और वैज्ञानिकों की चिंता
अमेरिकी चुनावों में भारी और निर्णायक जीत के बाद जिन देशों ने बधाई दी है, उनमें अफ़गानिस्तान की तालिबान सरकार भी शामिल है. तालिबान ने अमेरिकी लोगों को "अपनी महान देश का नेतृत्व जिम्मेदारी एक महिला को नहीं सौंपने" के लिए बधाई दी. तालिबान नेताओं ने आशा जताई कि ट्रम्प का चुनाव यूएस-तालिबान रिश्तों के इतिहास में एक नया अध्याय शुरू करेगा. उन्होंने यह बताया कि 29 फरवरी, 2020 को ट्रम्प ने ही यूएस और तालिबान के बीच दोहा समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसने अफगान सरकार को बाहर कर दिया और अमेरिका को मई 2021 तक अफगानिस्तान छोड़ने, पांच सैन्य ठिकानों को बंद करने और तालिबान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को समाप्त करने का वचन देना पड़ा. हालांकि तालिबान ने लड़कियों की शिक्षा को छठी कक्षा के बाद प्रतिबंधित कर दिया है और हाल ही में घरों के बाहर महिलाओं की आवाज़ को भी प्रतिबंधित कर दिया है.
भारत में सीनियर पत्रकार और संपादक प्रभु चावला ने न्यू इ्ंडियन एक्सप्रेस में लेख लिखा है कि मोदी और ट्रम्प एक दूसरे के लिए बने हैं. चावला के मुताबिक, “2014 में मोदी की जीत और 2024 में ट्रम्प की जीत, दोनों नेताओं के निरंकुश एजेंडों की स्वीकृति, देशभक्ति को सशक्त बनाना और अधिनायकवादियों के साथ स्वाभाविक नजदीकी को प्रतिबिम्बित करती है. ये दोनों नेता 12,000 किलोमीटर की दूरी पर हैं, लेकिन विश्वास के कारण जुड़े हुए हैं. दोनों अपनी पार्टियों से बड़े हैं. दोनों संविधान की शपथ लेते हैं, लेकिन वे किताब में दिए गए अधिकारों से कहीं अधिक शक्ति हासिल करने के लिए उसमें पर्याप्त छेद ढूंढ लेते हैं. वे अपने चारों ओर ऐसे लोगों से घिरे रहते हैं, जो उन्हें वही सुनाते हैं जो वे सुनना चाहते हैं. दोनों अकेले, केंद्र-स्तर पर चमकना चाहते हैं. दोनों न्यूनतम सरकार के माध्यम से अधिकतम शासन देना चाहते हैं. गजब की समानताएं हैं.”
जिन देशों ने सकारात्मक प्रतिक्रियाएं दी हैं उनमें हंगरी के विक्तोर ओरबान सबसे आगे हैं, जिनके पुतिन से करीबी संबंध हैं. अक्टूबर में, हंगरी के प्रधानमंत्री विक्टर ओरबान ने यह कसम खाई थी कि "अगर ट्रम्प लौटते हैं तो वह कई शैंपेन की बोतलें खोलेंगे." और जब अमेरिकी मतदाता मतदान कर रहे थे, तो उनके समर्थक बुडापेस्ट में उत्सव के लिए एकत्रित हो गए थे, जबकि परिणाम घोषित भी नहीं हुए थे.
बाद में ओरबान ने कहा कि उन्होंने "शैंपेन के वादे को केवल आंशिक रूप से पूरा किया" क्योंकि जब परिणाम सामने आए, वह किर्गिज़स्तान में थे और उन्होंने वोदका पीकर खुशी मनाई.
ओरबान और उनके जैसे विचार रखने वाले अन्य यूरोपीय नेता, जैसे जर्मनी, नीदरलैंड्स, और सर्बिया के नेता, इस चुनाव को न केवल कठोर आव्रजन नीतियों के पक्षधर एक समान विचारधारा वाले व्यक्ति के व्हाइट हाउस लौटने के रूप में देख रहे हैं, बल्कि यह भी संकेत है कि इतिहास उनके पक्ष में है और वे अपने राजनीतिक विरोधियों को जो "वोक" और "एलिटिस्ट" मानते हैं, उन्हें पीछे छोड़ सकते हैं.
ओरबान और उनके समर्थक यूरोप के दक्षिणपंथी दलों के साथ संबंध बनाए हुए हैं, जैसे कि जॉर्जिया मेलोनी (इटली की प्रधानमंत्री) और गीर्ट वाइल्डर्स (नीदरलैंड्स के दक्षिणपंथी नेता), जिन्होंने ट्रम्प का स्वागत किया है. ट्रम्प की नीतियों, जैसे आव्रजन के खिलाफ सख्ती और राष्ट्रीय हितों के समर्थन में, यूरोपीय देशों में दक्षिणपंथी दलों का समर्थन बढ़ा है. हालांकि, यूरोप में विभिन्न दक्षिणपंथी दलों के बीच ट्रम्प के प्रति समर्थन के बावजूद, कुछ मुद्दों पर मतभेद भी हैं. उदाहरण के लिए, जॉर्जिया मेलोनी ने नाटो का समर्थन किया है और यूक्रेन के खिलाफ रूस के आक्रमण का विरोध किया है.
रूसी प्रतिक्रिया: लिबरल मुक्त दुनिया की तरफ
उधर रूस में वहाँ के विचारक एलेक्ज़ेंडर डुगिन ने ट्रम्प की जीत के वैश्विक प्रभाव पर टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “हम जीत गए हैं. अब दुनिया कभी भी पहले जैसी नहीं रहेगी. ग्लोबलिस्ट अपनी अंतिम लड़ाई हार गये हैं.” डुगिन ने अपने विचारों में "एंटी-अमेरिकी क्रांति" और "रूसी साम्राज्य" के निर्माण की वकालत की है, जिसमें "अटलांटिक के आसपास के लोकतांत्रिक देशों के गठबंधन का खंडन, संयुक्त राज्य अमेरिका की सामरिक नियंत्रण की अस्वीकृति, और आर्थिक, उदार बाजार मूल्यों की सर्वोच्चता का खंडन" शामिल है, साथ ही पारंपरिक पारिवारिक संरचनाओं को फिर से स्थापित करना और कठोर लिंग भूमिकाओं का समर्थन करना.
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने गुरुवार को कहा कि "लिबरल लोकतंत्रों का दुनिया पर प्रभाव समाप्त हो रहा है." वाशिंगटन पोस्ट के मुताबिक ट्रम्प और पुतिन ने गुरुवार को बात की, पर पुतिन मुकर गये और इस कॉल को "काल्पनिक" बताया.
एक साक्षात्कार में, पुतिन के राष्ट्रपति सहायक निकोलाय पात्रुशेव ने आज कहा, "चुनाव में सफलता पाने के लिए, डोनाल्ड ट्रम्प ने कुछ ताकतों का सहारा लिया, और वे अहसान उन्हें चुकाने होंगे. बतौर एक जिम्मेदार व्यक्ति उन्हें पूरा करने के लिए वह बाध्य होंगे."
इस बीच, अमेरिकी और यूक्रेनी अधिकारियों ने रिपोर्ट किया कि रूस ने कर्स्क क्षेत्र में यूक्रेनी सैनिकों द्वारा इस वर्ष कब्जा की गई ज़मीन को फिर से छीनने के लिए 50,000 सैनिकों को एकत्र किया है, जिसमें उत्तर कोरियाई सैनिक भी शामिल हैं.
चिंता में हैं दुनिया के वैज्ञानिक
नेचर पत्रिका में छपे एक लेख में वैज्ञानिकों से इस चुनाव पर प्रतिक्रिया ली गई है. "मेरे 82 वर्षों के लंबे जीवन में ... शायद ही कभी ऐसा दिन आया हो जब मैं इतना दुखी महसूस करूं," कहते हैं फ्रेजर स्टोडार्ट, जो एक नोबेल पुरस्कार विजेता हैं और पिछले साल अमेरिका छोड़ने के बाद अब हांगकांग विश्वविद्यालय के रसायन शास्त्र विभाग के सदस्य हैं. "मैंने जो कुछ देखा, वह मुझे बहुत बुरा लगा है, यह सिर्फ अमेरिका के लिए नहीं, बल्कि हम सभी के लिए दुनिया भर में बहुत ही बुरा है."
न्यूयॉर्क सिटी के सिटी कॉलेज में भौतिकी के प्रोफेसर माइकल लुबेल, जो संघीय विज्ञान-नीति मुद्दों को ट्रैक करते हैं, कहते हैं कि अमेरिकी राजनीति इस समय जिस हद तक ध्रुवीकृत है, उसे देखते हुए वह परिणाम से "हैरान, लेकिन चौंके नहीं" हैं. लुबेल का कहना है कि ट्रम्प की जीत के परिणाम सरकार की नीतियों और विज्ञान पर गहरे प्रभाव डालेंगे, खासकर क्योंकि ट्रम्प वैज्ञानिकों और अन्य विशेषज्ञों के प्रति गहरी शंका रखते हैं, जो संघीय सरकार में सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण नीति का प्रबंधन करते हैं.
ट्रम्प ने पहले कहा था कि जलवायु परिवर्तन एक धोखा है और उन्होंने अमेरिका को पेरिस जलवायु समझौते से बाहर कर दिया था. उन्होंने यह भी कहा था कि वह रॉबर्ट एफ. केनेडी जूनियर, जो वैक्सीनेशन सुरक्षा पर सवाल उठाते हैं, को अपनी सरकार में एक "बड़ी भूमिका" देंगे, और उन्होंने वादा किया था कि अगर वैज्ञानिक उनके राजनीतिक एजेंडे का विरोध करते हैं, तो उन्हें संघीय सरकार से बाहर करना आसान बना देंगे.
नेचर द्वारा पिछले महीने किए गए सर्वेक्षण में भी ये चिंताएं की गई थीं.. 2,000 से अधिक पाठकों ने सर्वेक्षण का उत्तर दिया, जिसमें 86% ने हैरिस को पसंद किया, जलवायु परिवर्तन, सार्वजनिक स्वास्थ्य और अमेरिकी लोकतंत्र की स्थिति के कारण. कुछ ने तो यह भी कहा कि अगर ट्रम्प जीतते हैं तो वे अपना स्थान या अध्ययन बदलने पर विचार करेंगे.
कितना निर्णायक है धारावी इस बार के महाराष्ट्र चुनाव में ?
अजित पवार का धमाका, शरद पवार और अमित शाह के साथ मीटिंग में था अडानी
महाराष्ट्र के चुनाव में इस बार एक नई चीज हो रही है और वो यह कि नतीजा चाहे जो हो, पर चाचा से ज्यादा भतीजा मीडिया में हेडलाइंस बटोर रहा है. “बंटोगे तो कटोगे” पर भाजपा से असहमति जताने के बाद अजित ने एक और “खुलासा बम” फोड़ा है. उन्होंने कहा है कि पांच साल पहले अविभाजित एनसीपी और भाजपा के बीच बातचीत के दौरान मीटिंग में उद्योगपति गौतम अडानी भी मौजूद थे. अजित पवार ने 'द न्यूज़ मिनट' के लिए श्रीनिवास जैन को दिए इंटरव्यू में कहा, “आपको नहीं पता? पांच साल पहले यह हुआ. सबको मालूम है, बैठक कहाँ हुई…सब वहां थे. मैं आपको फिर से बताता हूँ…अमित शाह वहां थे, गौतम अडानी वहां थे, प्रफुल पटेल वहां थे, देवेंद्र फडणवीस वहां थे, अजित पवार वहां थे और पवार साहब वहां थे.” जब उनसे उनकी पार्टी की विचारधारा की स्पष्टता पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा, "महाराष्ट्र में विचारधारा के बारे में मत पूछिए... राज्य की पूरी राजनीति बदल गई है. यहाँ सभी को सत्ता चाहिए. सत्ता के लिए विचारधारा को किनारे कर दिया गया है." जब उनसे पूछा गया कि शरद पवार बीजेपी खेमे में शामिल क्यों नहीं हुए, तो उन्होंने कहा, "पवार साहब के मन में क्या है, कोई नहीं बता सकता...ना आंटी, ना सुप्रिया (सुले)."
अजित पवार ने इंटरव्यू में अडानी का नाम बताकर परोक्ष रूप से यह भी बता दिया कि क्यों 20 हजार करोड़ की धरावी के पुनर्विकास की परियोजना “अडानी रियल्टी” को हासिल हुई! महाराष्ट्र में चुनाव हैं और मीडिया में धरावी की जमकर चर्चा है. 2008 की ऑस्कर विजेता फिल्म ‘स्लमडॉग मिलियनेयर’ में दिखाई गई चर्चित झुग्गी बस्ती धरावी को एक महंगे नवीनीकरण के लिए तैयार किया जा रहा है. धरावी की नीली टारपोलिन से ढकी झुग्गी-झोपड़ियां अंतरराष्ट्रीय आगंतुकों के लिए भारत का पहला दृश्य होती हैं, जब वे विमान से आते हैं. सरसरी तौर पर देखने से “अडानी रियल्टी” को हासिल धरावी के पुनर्विकास की यह परियोजना अनुकूल प्रतीत होती है, लेकिन धरातल पर ऐसी स्थिति नहीं है. यहां रहने और किस्म-किस्म के कारोबार या धंधा करने वाले सभी लोग इस योजना से खुश नहीं हैं. उनकी कई चिंताएं और सवाल हैं. कुम्भार वाड़ा धरावी में मिट्टी के बर्तनों के व्यवसाय के लिए जाता है.
यहां रहने वाली 51 वर्षीया कुम्हार शरीफा वागड़िया कहती हैं, “मुझे अपनी आजीविका पर असर की चिंता है.” वागड़िया, जिनका परिवार 70 साल पहले गुजरात से प्रवासित हुआ था, को डर है कि नए घर उनके परिवार की जरूरतों के लिए पर्याप्त नहीं होंगे. हमारे परिवार के पास तीन घर हैं, एक छोटा गोदाम जहां हम तैयार उत्पादों को स्टोर करते हैं और यह वर्कशॉप” वागड़िया ने कहा, दीयों को रंगते हुए, जो हिंदुओं द्वारा प्रार्थनाओं के दौरान उपयोग किए जाने वाले पारंपरिक मिट्टी के दीपक हैं.
वागड़िया की चिंताएं उस सर्वेक्षण से उत्पन्न होती हैं जो नए घरों के लिए परिवारों की पात्रता निर्धारित करने के लिए किया गया था. 14 साल पहले जब यह सर्वेक्षण किया गया था, तब सभी बेटे उसके साथ रहते थे. इस बीच उसके दो बेटे शादी कर चुके हैं और घर से जा चुके हैं, लेकिन उन्हें एक पात्र परिवार का हिस्सा माना गया है. लिहाजा हमें 300-350 वर्ग फुट का एक घर मिलेगा, जबकि तीनों बेटों के लिए अलग-अलग मकान मिलना चाहिए. इतना ही नहीं हमें भूतल पर ही मिट्टी के बर्तन आदि सुखाने के लिए पर्याप्त जगह भी मिलनी चाहिए.
परिवार के व्यवसाय की आर्थिक स्थिति बहुत संतोषजनक नहीं है। “हम हर महीने कच्चे माल पर लगभग 5,000 रूपए खर्च करते हैं, और थोक खरीदारों को मिट्टी के बर्तनों की बिक्री से हमारी कुल मासिक आय लगभग 40,000 रूपए है. लेकिन यह मुश्किल से हमारी जरूरतें पूरी करता है, बचत तो दूर की बात है,” वागड़िया के छोटे बेटे इमरान हुसैन ने अल जज़ीरा को बताया. वह भट्टी से निकलीं नए लॉट की मटकियों और छोटे मिट्टी के बर्तनों आदि का मुआयना कर रहे थे।
धरावी का भविष्य क्या होगा? इस पर 1995 में झोपड़पट्टी पुनर्वास प्राधिकरण (SRA) की स्थापना के बाद से ही गंभीरता से विचार किया जाने लगा. 2003 में महाराष्ट्र सरकार ने धरावी को एक एकीकृत टाउनशिप के रूप में पुनर्विकसित करने का निर्णय लिया. हालांकि, निवासियों ने विरोध किया, जो आवासों के आकार और गुणवत्ता के प्रति चिंतित थे। पात्र परिवार उन्हें ही माना गया है, जो कट ऑफ तिथि 1 जनवरी वर्ष 2000 के पहले से निवासरत हैं. सरकार ने 2009 में निवासियों का अंतिम सर्वे किया था, तब पात्र परिवार 58 हजार थे.
लेकिन अपात्र परिवारों को जोड़कर यह संख्या 1 लाख के आसपास बताई जा रही है. इनमें से कई परिवार शरीफा के जैसे हैं, जिनके व्यस्क बच्चे सर्वे के बाद दूसरी जगह चले गए हैं. शरीफा जैसी कहानी, चिंताएं और सवाल कइयों के हैं. अलजजीरा ने पिछले साल धारावी का हाल जाना था और यह स्टोरी प्रकाशित की थी.
धारावी में किसे फिर से बसाया जाएगा और इसकी लागत क्या होगी? कितने सैकड़ों हजार लोग बेघर और बेरोजगार हो जाएंगे? धरावी एक प्रमुख निर्माण केंद्र है, जिसमें चमड़ा श्रमिक, वस्त्र निर्माता, कारीगर, मिट्टी के बर्तन बनाने वाले, कैटरर्स, कढ़ाई करने वाले, रीसाइक्लिंग व्यवसाय और ऐसी डिलीवरी सेवाएं शामिल हैं, जो मुंबई के बाकी हिस्सों की सेवा करती हैं. उन सैकड़ों हजारों वर्तमान निवासियों और धरावी के श्रमिकों का क्या होगा जिन्हें पुनर्विकसित धरावी में आवास के लिए अयोग्य माना गया है? लोग सरकार और अडानी के खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं. लेखक, स्पीकर, एंकर परंजॉय गुहा ठाकुरता द्वारा तैयार की गई एक डॉक्यूमेंटरी फिल्म में ऐसे तमाम सवाल उठाए गए हैं. मसलन, धरावी की यह परियोजना अडानी को कितनी कमाई करवाएगी? यह वीडियो लोगों के संघर्ष की भावना को दिखाता है. वे पूछते हैं ‘धारावी का बॉस कौन है?’
गौतम अडानी भी अपने ब्लॉग में लिख चुके हैं कि विश्व हैवीवेट बॉक्सिंग चैंपियन माइक टायसन ने अपनी बकेट में भारत में दो स्थानों को सूचीबद्ध किया था जहाँ वह जाना चाहते थे. एक था ताज महल और दूसरा था धरावी. हमारे काम के बाद, यदि माइक टायसन फिर से धारावी का दौरा करते हैं, तो वह शायद पहले देखी गई धरावी को पहचान नहीं पाएंगे. मुझे यकीन है कि वह इसकी आत्मा को पहले की तरह ही जीवंत और जोशीला पाएंगे. भगवान की कृपा से, डैनी बॉयल जैसे लोग यह जानेंगे कि नई धरावी बिना ’स्लमडॉग’ उपसर्ग के करोड़पति पैदा कर रही है.
पर धारावी के लोग न्यूजलाँड्री को यहाँ कुछ और ही बता रहे हैं.
स्मार्ट चश्मा लगा तेज़ी से निकल जाएगा अमेज़न का डिलीवरी वाला
अमेजन अपने डिलीवरी मेन के लिए स्मार्ट चश्मे विकसित कर रहा है, जो उन्हें सामान पहुंचाने के समय में कुछ सेकंड की बचत कर सकते हैं. रिपोर्ट के अनुसार ये स्मार्ट चश्मे ड्राइवरों को महत्वपूर्ण सूचनाएं और दिशा-निर्देश देने में सक्षम होंगे, जिससे उनके कार्यों में तेजी आएगी और समय की बचत होगी. इस तकनीक का उद्देश्य डिलीवरी की दक्षता में सुधार करना और कार्य के दौरान ड्राइवरों का मार्गदर्शन करना है. अमेजन लगातार नई तकनीकें अपना रहा है ताकि उसके लॉजिस्टिक्स ऑपरेशन अधिक कुशल बन सकें. अमेजन की यह परियोजना प्रति पैकेज डिलीवरी लागत को कम करने और मुनाफे को बढ़ाने के लिए है. खासकर ऐसे समय में जब वॉलमार्ट जैसी कंपनियों से लगातार उसकी प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है.
पिकासो, बैंक्सी, वॉरहोल, क्लिम्ट के फेक काम बेचने वाले गिरोह का भंडाफोड़
इटली की पुलिस ने एक जालसाजी नेटवर्क को तोड़ने में सफलता पाई है. ये नेटवर्क यूरोप तक फैला हुआ था और बैंक्सी, पाब्लो पिकासो, एंडी वॉरहोल और गुस्ताव क्लिम्ट जैसे प्रसिद्ध कलाकारों की जाली कलाकृतियाँ बनाकर कला प्रेमियों को चूना लगा रहा था. इटली, स्पेन, फ्रांस और बेल्जियम में 38 लोगों पर चोरी के सामान, जालसाजी और अवैध कलाकृतियों की बिक्री के आरोप में जांच चल रही है. यह जांच पिछले साल शुरू हुई जब इटली की कला पुलिस ने पीसा में 200 नकली कलाकृतियाँ जब्त कीं, जिनमें एक अमेडियो मोदिग्लिआनी की नकल भी शामिल थी.
आज के लिए इतना ही. आप बता सकते हैं अपनी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी हमें. मिलेंगे हरकारा के अगले अंक के साथ.